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________________ स्वाध्याय करें, अपनी बुद्धि का उपयोग करें। अच्छे और बुरे का निर्णय स्व-विवेक और स्व-बुद्धि से करें कि हमारे जीवन के लिए कौनसा मार्ग श्रेयस्कर है, कल्याणकर है और अटूट विश्वास के साथ उस मार्ग पर चल पड़ो। तुम इधर-उधर भटककर कुछ भी न पा सकोगे। बुद्धिमान आदमी अर्थहीन वस्तुओं में शक्ति व्यय नहीं करता। वह अपनी शक्ति चैतन्य की जागृति में, विकास में लगाता है। ____ एक व्यक्ति ने भू-जल पाने के लिए अपने खेत में कुएँ की खुदाई शुरू की। बीस फुट खोदा होगा, लेकिन पानी न आया, सोचा कि दूसरी जगह खुदाई शुरू करूँ, वहाँ भी बीस फुट गहरा गड्ढा खोदा, लेकिन पानी न निकला। इस तरह उसने दस गड्ढे बना लिए, मगर पानी न निकला। वह हताश होकर बैठ गया। अचानक एक व्यक्ति आया और पूछा, उदास क्यों हो। उसने कहा, बीस-बीस फुट के दस गड्ढे खोद लिए लेकिन पानी नहीं निकला। आगन्तुक ने कहा, अगर दस जगह खोदने के बजाय एक जगह ही खोदते चले जाते तो पानी निकल गया होता। यही वृत्ति चलती है धर्म के मार्ग में भी। व्यक्ति धर्म के मार्ग में भी व्यावसायिक बुद्धि रखता है। एक देव से न मिला, तो दूसरे को पकड़ लेते हो-भगवान कहते हैं यह बुद्धिहीनता है। बौद्धिक शक्तियों का उपयोग करो और बुद्धिमत्ता से अपने जीवन का निर्णय करो और आगे बढ़ो। ___ महावीर नील लेश्या का अगला लक्षण बताते हैं 'अज्ञान' । ज्ञानी अहंकार नहीं करेगा, क्रोध नहीं करेगा। अज्ञानी ही अहंकार और क्रोध करेगा। व्यक्ति अज्ञानी है, क्योंकि वह अपने अज्ञान को स्वीकार नहीं करता। वह मान बैठा है कि उसे सबकुछ पता है। लेकिन जिसे ज्ञान की तरफ जाना है, उसे मानना पड़ेगा कि वह अज्ञानी है। तभी विराट का द्वार खुलेगा। अज्ञान किसी की नियति नहीं है। अभी तुमने अभ्यास नहीं किया, श्रम नहीं किया, इसलिए अज्ञान तुम्हें घेरे हुए है। जब तुम्हें बोध होगा, होश आएगा तब तुम जानोगे कि स्वयं जैसा अज्ञानी कोई नहीं। विषयों के प्रति आसक्ति भी नील लेश्या का लक्षण है। निरंतर विषयों के सम्बन्ध में विचार करना, अपनी वृत्तियों को विषय-वासना से ग्रस्त रखना पतन की ओर जाना है। कहते हैं कि कौए को रात में दिखाई नहीं देता और उल्लू को दिन में कुछ भी नजर नहीं आता, लेकिन विषय-वासना में रत 132 धर्म, आखिर क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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