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________________ ध्यान कैसे करें ? यह तो जब शिविर होंगे तब बताया ही जाएगा लेकिन सीधी सरल भाषा में ध्यान का पहला चरण है बाहर से भीतर मुड़ें। दूसरा मार्ग भीतर के विकारों को समाप्त करो । तीसरा मार्ग है अपनी भागती हुई ऊर्जा को विश्राम दो। ध्यान की सबसे सरल विधियाँ हैं नासाग्र पर दृष्टि का केन्द्रीकरण - अर्धोन्मिलित नेत्रों से नासिका के अग्र भाग को इतनी त्वरा से देखना कि केवल नासाग्र ही रह जाय। तीन मिनिट के गहन केन्द्रीकरण के बाद श्वासों का आवागमन आंखें बंद करके देखें । किसी भी प्रकार का विचार नहीं । बस देखते रहें..... देखते रहें..... पन्द्रह मिनिट तक। इसके बाद अपने आज्ञा चक्र पर केन्द्रित हो जाएँ । प्रारंभ में कालिमा दिखाई देगी लेकिन जैसे-जैसे एकाग्रता बढ़ेगी, कालिमा दूर होती जाएगी और अन्य-अन्य रंग उभरते आएंगे। एक दिक्कत आएगी कि विचारों का तारतम्य शुरू हो जाएगा। अब चौथे चरण में इन विचारों के प्रति साक्षी हो जाना है। इन उठने वाले विचारों का तटस्थ होकर निरीक्षण करना है, उसमें शामिल नहीं होना है, बस देखना भर है । कोई क्रिया-प्रतिक्रिया भी नहीं करना, केवल साक्षी हो जाना । धीरे-धीरे विचारों का आना-जाना बंद हो जाएगा और यही है ध्यान की अवस्था । निर्विचार हो जाना ही ध्यान है । ध्यान किसी भी समय, किसी भी अवस्था में किया जा सकता है । सारा घर सोया है तुम भी लेटे हो और ध्यान कर सकते हो । ध्यान और नींद दोनों में आंखें बंद रहती हैं, पर नींद में चेतना सोई रहती है और ध्यान में चेतना जाग्रत रहती है। बहुत थोड़ा-सा फर्क है, लेकिन गहरा अंतर है चेतना की अवस्था में। दुनिया सोवे, जोगी पोवे । अन्तिम चरण है अन्तरलीनता । जहाँ तुम्हारे भीतर साधना प्रभावी हो गई अब कोई प्रयास नहीं है । सहज आत्मबोध । अब हम ध्यान के परिणामों की चर्चा करेंगे । ध्यान का सबसे पहला परिणाम है सच्चे स्वरूप का बोध । अभी तक तुम्हें केवल शरीर का ही बोध है। किसी ने तुम्हें नाम दे दिया, तुम उसी नाम को अपना समझने लगते हो। तुम मेरा नाम जानते हो और मैं तुम्हारा नाम । पर इससे हासिल क्या होगा ? कितना अच्छा हो मैं 'मुझे' जानूँ और तुम 'तुम्हें' जानो। एकात्म स्वरूप का बोध हो । ध्यान का कार्य है व्यक्ति अपने मौलिक स्वरूप को पहचाने - अपने मुक्ति का मूल मार्ग : ध्यान Jain Education International For Personal & Private Use Only 109 www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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