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तो। हम जिस ध्यान की चर्चा कर रहे हैं, वह भीतर का मार्ग है। यहाँ-वहाँ, इधर-उधर, ऊपर-नीचे सब ओर गए पर भीतर न गए इसलिए वह न मिला जो हमें मिलना चाहिए। स्वयं में प्रवेश न कर पाने के कारण कस्तरी-मुग की तरह भटक रहे हैं। सुगन्ध तो हमारे भीतर है, वह बाहर ढूँढ़ने से नहीं मिलेगी। ध्यान तो वह मार्ग है, जो जीते जी स्वर्ग का आनन्द दिलाता है, जीते जी प्रेम, आनन्द और शान्ति का स्वाद चखाता है, करुणा और दया में अवगाहन कराता है। पर इनके लिए आना भीतर ही पड़ेगा। जो जहाँ खोया, उसे वहीं तो ढूँढ़ना होगा। . सूफी फकीरों में एक महिला फकीर हुई हैं-राबिया वसी। एक दिन वह साँझ ढले अपनी कुटिया के बाहर कुछ ढूँढ़ रही थीं। उधर से कुछ सूफी फकीर गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि राबिया काफी देर से कुछ ढूँढ़ रही है। फकीरों ने राबिया से पूछा, क्या ढूँढ रही हो? लेकिन राबिया ने उनसे पूछा कि वे कहाँ जा रहे हैं ? खुदा की तलाश में, फकीरों ने उत्तर दिया। 'पर तुम्हारा क्या खो गया है, तुम क्या ढूँढ़ रही हो' उन्होंने पुनः पूछा। राबिया ने कहा, फकीरो, मेरी सुई खो गई है, वही यहाँ तलाश कर रही हूँ। फकीरों ने सोचा राबिया बूढ़ी हो गई है, चलो हम ढूँढ़ देते हैं। सारे फकीर मिलकर सुई ढूँढ़ने लगे। आधा घण्टे तक मशक्कत करने के बाद भी जब सुई न मिली तो एक फकीर ने पूछा, राबिया जरा बताओ तो तुम्हारी सुई कहाँ खोई थी ? राबिया ने कहा, सुई तो कुटिया में खोई थी। मतलब हमें बेवकूफ बनाया जा रहा है, हमने तो समझा था कि राबिया तुम शास्त्रज्ञ हो, विद्वान हो, आत्मज्ञ हो, लगता है राबिया तुम बुढ़ा गई हो, अरे जो सुई कुटिया में खोई है, वह बाहर तलाशने से कैसे मिलेगी ? फकीर बोला। ___कुटिया में बहुत अँधेरा है, बाहर उजाला है तो मैंने सोचा बाहर ही खोज लूँ। राबिया ने उत्तर दिया। फकीरों ने कहा, अरे, तेरी बुद्धि नष्ट हो गई है, चाहे भीतर अँधेरा हो या उजाला, लेकिन जो चीज भीतर खोई है उसकी तलाश भीतर ही करनी होगी। राबिया ने कहा, मैं तुमसे यही कहना चाहती हूँ जो चीज भीतर है वह बाहर खोजने से नहीं मिलेगी।
जब तुम ध्यान करोगे तत्काल उसका परिणाम मिलेगा। अभी ध्यान किया अभी शान्ति मिली। ध्यान का परिणाम एकदम नकद है।
धर्म,आखिर क्या है?
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