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________________ गुरु ने कहा, 'सुनो, हम लोग जब तक नगर में पहुंचेंगे, मध्य रात्रि हो जाएगी। बारिश हो रही है हाथ-पांव-कपड़े सब गीले होकर मिट्टी से सन गए हैं ऐसे में रात्रि के एक-डेढ़ बजे तक नगर में पहुँच पाएँगे। वहाँ पहुँचकर किसी धर्मशाला के द्वार पर जाकर उसे खटखटाएँगे। तब भीतर से चौकीदार पूछेगा, ‘बाहर कौन है ?' हम कहेंगे, ‘दो संत हैं। सराय में रहना चाहते हैं।' तब वह गुस्से में कहेगा, 'भगो-भगो, पता नहीं कहाँ से संत आ जाते हैं ? पैसा तो देंगे नहीं, रात की नींद खराब करेंगे, चलो भगो।' तब पन्द्रह मिनट बाद हम लोग फिर से दरवाजा खटखटाएँगे कहेंगे, 'भैया दरवाजा खोलो।' भीतर सोया हुआ चौकीदार पूछेगा, ‘बाहर कौन?' तब हम फिर कहेंगे 'वही दो संत।' चौकीदार कहेगा 'अरे, क्या तुम अभी तक बैठे हो ? भगो यहाँ से, नहीं तो डंडा मार कर भगाऊंगा। मैं तुम लोगों के लिए दरवाजा नहीं खोलूँगा। मुफ्तखोरों! एक कौड़ी देकर नहीं जाओगे। रात की नींद बिगाड़ रहे हो, भगो यहाँ से।' ‘लियो, पन्द्रह मिनिट बाद हम फिर दरवाजा खटखटाएँगे। फिर वह पूछेगा, 'बाहर कौन?' तब भी अपना जवाब होगा, 'वे ही दो संत। और तब वह चौकीदार हाथ में डंडा लेकर बाहर आएगा और दरवाजा खोलते ही हम लोगों की पीठ पर आठ-दस डंडे मारेगा।' लियो, जब वह हमें डंडे मार रहा हो तब भी हमारे हृदय में अगर उसके लिए प्रेम उमड़ता रहे तो समझना हम सच्चे संत हैं।' इस तरह का व्यवहार किए जाने के बाद भी हमारे हृदय में प्रेम और भाईचारे की भावना पलती रही तो मान लेना कि हम सच्चे संत हैं। जीवन की उठापटक में समतापूर्वक जीवन जीना ही साधना है। तो ये हुई कुछ बातें जीवन को सुखमय, शांतिमय जीने के लिए। मन की शांति को सर्वाधिक मूल्य दीजिए। संतोष रखें और सादगी से जिएँ। शरीर के सौन्दर्य से भी ज्यादा अच्छे स्वभाव और हृदय के गुण-सौन्दर्य को महत्त्व दीजिए। स्वयं को सरोवर और तरुवर की तरह बनाइए जो हर हाल में अपनी ओर से दूसरों को सुख और शीतलता की छाया देता है। 22 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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