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________________ चिंता छोड़ें, सुख से जिएं चिता हमारे शव को जलाती है, लेकिन चिंता जीते-जागते इंसान को जला डालती है। मनुष्य अपने जीवन में बचपन से लेकर पचपन तक और जवानी से लेकर बुढ़ापे तक किसी-न-किसी रूप में चिंता, घुटन, अवसाद या तनावग्रस्त होता है। दुनिया में कई करोड़ लोग ऐसे हैं जो कैंसर से ग्रस्त हैं तो कई करोड़ लोग ऐसे हैं जो हृदय रोग से ग्रस्त हैं । कई करोड़ ऐसे हैं जो एड्स ग्रस्त हैं और कई करोड़ पक्षाघात से ग्रस्त हैं । लेकिन दुनिया में सामान्य तौर पर दिखने में जितने भी लोग निरोग नज़र आते हैं वे अपने भीतर एक विशेष रोग पाले हुए हैं, जो उनके जीवन का सहज स्वभाव बनता जा रहा है और वह रोग चिंता । आपने महसूस किया होगा कि जैसे ही हम बचपन पार करते हैं हमारे साथ ताउम्र चिंता चलती रहती है। तनाव और टेंशन ये एक अर्थ में जुड़े दो भाषा के शब्द हैं। बचपन तक हरेक टेंशन फ्री रहता है लेकिन जैसे बाल्यावस्था बीतती है, वैसे ही व्यक्ति की महत्वाकांक्षाए बढती हैं और मनो-मस्तिष्क में चिंताएं चलने लगती हैं। Jain Education International 23 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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