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________________ समतामय जीवन ही साधना सुखी जीवन का एक सूत्र यह भी है कि आप अपने जीवन को समतापूर्वक जीने की कोशिश करें । उठापठक तो सभी के जीवन में आती है लेकिन इससे अपने हृदय को आन्दोलित न करें। भाग्यवश आपके पांव में अगर जूते नहीं हैं तो दुःखी न हों। आप यह सोचें कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके पांव भी नहीं हैं । कम से कम उनसे तो आप ज्यादा सुखी हैं । ईश्वर को धन्यवाद दें कि उसने जूते नहीं दिये तो क्या हुआ, उसने पांव तो दिए हैं। जीवन में मिलने वाली हर चीज को हम प्रेम से स्वीकार करें। परिवर्तन को हँस कर झेलने की कोशिश करें क्योंकि परिवर्तन तो जीवन में आएँगे ही। सुख आने पर गुमान और दुःख आने पर गम, दोनों ही आपके लिए घातक है। संत फ्रांसिस अपने शिष्य लियो के साथ एक नगर से दूसरे नगर की ओर जा रहे थे। वे जंगल से गुजर रहे थे और भंयकर बारिश हो रही थी । शिष्य पीछे और गुरु आगे चल रहे थे । मिट्टी गीली हो गई थी और दोनों के पाँव फिसल रहे थे। कपड़े मिट्टी से गंदे हो गए, पाँवों में कीचड़ लग गया, और तो और; हाथ की अंगुलियाँ और हथेली भी मिट्टी से सन गईं। बारिश में भीगते हुए शिष्य लियो ने अपने गुरु संत फ्रांसिस से पूछा, 'गुरुवर, यह बताएँ कि दुनिया में संत कौन होता है ? ' फ्रांसिस ने कहा, 'वह संत नहीं है जो पशु-पक्षियों की आवाज समझ लेता है ।' दो मिनट बाद लियो ने फिर पूछा, 'संत कौन होता है ? ' 'लियो, वह व्यक्ति भी संत नहीं होता जो कपड़े बदलकर साधु हो जाए । ' शिष्य ने फिर पूछा, 'प्रभु, तो फिर संत कौन होता है ?' संत ने कहा, लियो संत वह भी नहीं होता जो अंधों को आँखें और बहरों को आवाज दे दें ।' शिष्य चकराया कि अगर वह भी संत नहीं है तो फिर संत कौन है ? उसने अपना प्रश्न पुनः दोहराया। फ्रांसिस ने कहा, 'संत वह भी नहीं है जो गरीब को अमीर बना दे ।' लियो चकराया कि मेरा प्रश्न तो यह है कि संत कौन होता है और मेरा गुरु बार-बार यह बता रहे हैं कि संत कौन नहीं होता । वह झुंझला गया और कहा, 'गुरुवर, आप साफ-साफ बता दें कि आखिर संत कौन होता है ?' Jain Education International 21 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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