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हमारा जीवन नदी के प्रवाह की भाँति परिवर्तनशील है। इसलिए हमें प्रत्येक क्षण को सार्थक करना है। निरंतर परिवर्तित, अनिश्चित, अनबूझे भविष्य की गुत्थियाँ सुलझाने में वर्तमान के सुख को क्यों नष्ट करते हैं ? आज की ईश्वरीय सृष्टि में चिन्ता रहित होकर प्रभु का जो प्रसाद मिला है उसी में जिएँ।आज का स्वागत करें, यही जीवन जीने का सार है।
कल का दिन देखा है किसने, आज का दिन खोएँ क्यों। जिन घड़ियों में हँस सकते हैं,
उन घड़ियों में रोएँ क्यों। हम अनेक बार जीवन की विकट परिस्थितियों का साहस और धैर्य से मुकाबला कर लेते हैं पर छोटी-छोटी बातों को अपने पर हावी होने देते हैं उनसे कुप्रभावित हो जाते हैं जो उचित नहीं है। मिट्टी में मिलने से पहले जीवन का पूर्णतया आनन्द लो। जिससे हम उन्नति शिखर की ओर अग्रसर हो सके।
कई बार बीमारी का आधार शारीरिक नहीं होता है। भय, चिन्ता, घृणा, स्वार्थपरता, पूर्वाग्रह, अहं, राग-द्वेष आदि के कारण उत्पन्न स्थितियाँ व्याधियों का प्रमुख कारण है। चिन्ता स्वस्थ को भी रोगी बना देती है। चिन्ता से स्वाभाविक सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
भगवान हमारे पापों को क्षण भर के लिए चाहे माफ कर दे किन्तु स्नायु संस्थान हमारी किसी भी भूल हेतु क्षमा प्रदान नहीं करता है। विकारों को उत्पन्न करता ही है। __जो व्यक्ति मात्र अपने बारे में ही सोचता है उसे जीवन में कुछ विशेष प्राप्त नहीं होता। वह हर समय अत्यन्त दुःखी रहता है। किन्तु दूसरों की सेवा के लिए स्वयं के जीवन को भूलने वाला निश्चित रूप से सुख की प्राप्ति करता है। खाली समय में अपने सुख-दुःख का विचार करना ही हमारे दु:खों का कारण है। हमें इनके बारे में ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए। चिन्ता निवारण का प्रथम नियम है व्यस्त रहिए, चिन्तित व्यक्ति को चाहिए कि वह हर वक्त व्यस्त रहे अन्यथा निराशा में डूब जाएगा। हमें प्रतिदिन प्रभु से यह प्रार्थना करते हुए इस प्रकार का जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए कि
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