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________________ का नाम तय करना मेरे लिए बेहद मुश्किल हो रहा है। इस पर टीचर ने कहा – मुझे अपनी समस्या बताओ शायद मैं तुम्हारी मदद कर पाऊँ। छात्रा ने हिचकिचाते हुए बताया कि मेरी नज़र में दुनिया के सात आश्चर्य हैं : ऐसी खूबसूरत चीज़ों को देखना जिनकी हमेशा हम उपेक्षा करते रहते हैं, हर एक को प्यारी लगने वाली बातें सुनना, लोगों के जीवन में ढेर सारी खुशियों की बरसात करना, ऐसे लोगों को प्रेमपूर्ण स्पर्श देना जो मानवीयता के स्पर्श के मोहताज रहे हैं, अपने प्रियजनों के सुख-दुख में शरीक होना और उनका अहसास करना, हर मौके-बे-मौके खुलकर हँसना और प्रेम से महरूम लोगों को प्रेम से लबालब करना। छात्रा की बातों को पूरा क्लास-रूम ऐसे सुन रहा था जैसे लगता था कि मानों वहाँ कोई है ही नहीं। उसकी बात ख़त्म होने के बाद भी कुछ पलों तक पूरे क्लास-रूम में स्तब्धता छायी रही। सच बात है कि जिन चीज़ों की हम यूँ ही साधारण और महत्वहीन समझते हुए उपेक्षा करते जाते हैं, पता चलता है कि असली खूबसूरती उनमें ही थी। सचमुच वे कितनी आश्चर्य से भरी हुई थीं। ___ जब व्यक्ति की गुण ग्राहक अंतर्दृष्टि खुलती है तभी उसे जीवन का सत्य प्राप्त होता है। हमारी दृष्टि केवल बाहर रहेगी तो सुख और सुविधाएँ तो हमारे हाथ में आ जाएँगी, पर जीवन की समृद्धि हाथों से छिटक जाएगी। दुनिया की बहुमूल्य और खूबसूरत चीज़ों को मानव द्वारा न तो निर्मित किया जा सकता हे और न ही कहीं से लाया जा सकता है। मनुष्य के जीवन में समृद्धि हो पर धर्म एवं शांति नहीं हो तो वह जीवन शुष्क है, प्रयोजन रहित और निरर्थक है। धर्म एवं शांतिमय जीवन के लिए सचितंन का होना अत्यन्त आवश्यक है। ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जो चिंतन शून्य हो। हाँ चिंतन की राह, चितंन की दिशा भिन्न-भिन्न हो सकती है और वह भिन्न-भिन्न होती भी है। सबका एक ही ध्येय होता है कि येन केन प्रकारेण व्यक्ति शांति को प्राप्त करे। जब मनुष्य अपने दोषों को शांत करता है, उनका शमन करता है तब अन्तरंग से शांति प्रकट होती है। बाहर कहीं भी शांति नहीं है। शांति स्वयं में है, अपने में है, इसलिए स्वयं को देखना-खोजना ही शांति को पाने का सरल 841 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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