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________________ उसकी मार से दूसरा व्यक्ति लहुलूहान हो गया। वह एक पैर से उस घायल व्यक्ति को लात मारता है, वहीं दूसरा पैर सड़क पर पड़े केले के छिलके पर आने से वह गिर जाता है। उसका पाँव टूट जाता है। डॉक्टर चिकित्सा करते हैं पर अन्ततः पाँव ठीक नहीं होने के कारण काट दिया जाता है। वह अपने घर में पड़ा रहता है। पैर नहीं होने से वह अपने को असहाय महसूस करने लगता है। एक दिन उस सैन्य अधिकारी ने बहुत ही मायूस होकर अपनी माँ से कहा है कि माँ तूने मुझे सब कुछ सिखाया पर यह नहीं सिखाया कि दुरभिमान नहीं करना चाहिए। विनम्र होना चाहिए। अब मुझे लग रहा है कि एक सामान्य इंसान होकर भी मैं जगत में ऊँचाई पर पहुंच रहा था। लेकिन विनम्र नहीं होने से व्यावहारिक जगत में मैं अहंकारवश हरेक से लड़ पड़ता था। इसलिए मेरी यह स्थिति हुई है। वास्तव में 'मैं' बहुत छोटा है और दुनिया बहुत बड़ी है। बच्चों के लिए माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार बड़े ही महत्त्वपूर्ण हुआ करते हैं। परिवार से विनम्रता, सदाशयता चारित्रिक दृढ़ता आदि संस्कार प्राप्त करके उनका पूर्णरूपेण पालन करने पर ही बच्चा आदर्श नागरिक बन सकता है। जो जितना ज्ञानी होगा वह उतना ही विनम्र भी होगा। पेड़ पर अधिक फल लगते हैं तो पेड़ झुक जाता है। अकड़कर रहने वाला हूंठ पेड़ सदा फल विहीन रहता है। मानव यदि मानवीयता के साथ जीता है तो वह प्रभु तुल्य है अन्यथा वह मनुष्य होते हुए पशुतुल्य है। सेवा-भाव, विनम्रता, चारित्रिक दृढ़ता एवं निर्व्यसनता के साथ जीवन व्यतीत करना ही मानव जीवन की सार्थकता है। चन्द्रयश मुनि दीक्षा ग्रहण करने से एक दिन पूर्व अपने बहनोई के साथ आचार्य रुद्रदत्तमुनि के दर्शन हेतु गए। बहनोई ने वहाँ मज़ाक में आचार्य श्री से कहा- हमारे साले चन्द्रयश जी आपके शिष्य बनने के योग्य हैं। आचार्य रुद्रदत अत्यन्त रौद्र प्रकृति के थे। उन्होंने बहनोई की बात सुनते ही मुट्ठी भर राख चन्द्रयश के सिर पर मली और केशों का लोच कर दिया। चन्द्रयश ने किसी भी प्रकार का विरोध किए बिना दीक्षा को अंगीकार किया तथा मुनि-वेश धारण किया। 78/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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