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के पास इलाज करवाता है। मन की रुग्णता से व्यवहार एवं विचारों की रुग्णता होना अधिकांशत: संभव है। इसलिए हमारी शिक्षा दीक्षा के साथ हर घर में एक फैमिली प्रशिक्षक होना चाहिए जिसमें बिना किसी खर्च के स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर को प्राप्त किया जा सके। हमें भूल को स्वीकृति देना सीखना होगा । कमियों का प्रचार नहीं करके उसके प्रति सावधान और सजग होना होगा। जिससे पुनरावृत्ति नहीं हो । एक राजदूत से पूछा गया .' आपकी सफलता का राज़ क्या है ?' उसने कहा - 'मैं किसी को बुरी बात नहीं कहता। अगर कहता भी हूँ तो जो समझाने का है उतना ही कहता हूँ । '
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन ने अपने जीवन की सफलता का अनुभव देते हुए कहा कि तुम किसी की आलोचना, निंदा मत करो ताकि कोई तुम्हारी भी नहीं करे। बात सही है यदि अपने घर की सीढ़ियाँ गंदी है तो हम पड़ौसी को सीढ़ियाँ गंदी होने की शिकायत कैसे एवं क्यों करते हैं ? उसी प्रकार हमारे मन में गंदगी व्याप्त है तो हम दूसरों को बुरा क्यों कहते हैं ? स्वयं को क्यों नहीं सुधारते हैं ?
जीवन व्यवहार की सुन्दरता, सरसता, सन्तुलन एवं सामंजस्य बनाए रखने हेतु परम उपयोगी, सही, भूल बताने पर भी हम सबको चुभन होती है, पीड़ा होती है। हमको भूल बताते समय विवाद नहीं करना है। किसी को भूल बताने के लिए सर्वप्रथम अपनी भूल बतानी चाहिए। यह विश्वास दिलाना चाहिए कि जीवन में भूल कौन नहीं करता है । किन्तु भूल को सुधारकर संशोधन करने वाला बड़ा होता है। इससे हम सबकी हीनता की ग्रंथि खुलेगी तथा व्यवहार सुधरेगा ।
प्रसिद्ध बंगाली पत्रिका 'प्रवासी' के संपादक श्री रामानंद चट्टोपाध्याय एक बार गगा तट पर पैर फिसलने से नदी में गिरकर तेज़ बहाव में बहकर डूबने लगे। एक कुशल तैराक युवक ने तुरंत पानी में कूदकर उनका बचा लिया। कुछ दिनों बाद वही युवक उनके कार्यालय में आकर अपनी कुछ कविताओं को 'प्रवासी' में छापने की ज़िद करने लगा। जब रामानंद जी ने कविताएँ निम्न स्तर की पाकर मना किया, तो वह उन्हें खरी-खोटी सुनाते हुए कहने लगा,
'मैंने
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