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की बजाय बहू सजने संवरने में लगी थी। यह देखकर सास झाड़ लगाने लगी। बेटे से यह देखा नहीं गया। उसने कहा- लाओ माँ, मैं झाड़ लगा देता हूँ।
माँ ऊँची आवाज़ में बहू को सुनाते हुए कहती है - अरे रहने दे बेटा, मैं ही लगा देती हूँ। यह सुनकर बहू लिपस्टिक लगाते हुए कहती है - अरे झगड़ते क्यों हो, काम बाँट लो न। एक दिन बेटा झाड़ लगा देगा और एक दिन माँ लगा देगी। ऐसा व्यवहार दूसरों के दिलों को चोट पहुंचाता है। हम पढ़ेलिखे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि अपने कर्तव्य व सद्व्यवहार को भूल जाए। ___वर्तमान युग में नशा करना, होटलों में जाना, जुआ खेलना, अन्तर्जातीय विवाह, फैशन का अंधानुकरण हमारे व्यवहार रहन-सहन का अंग बनता जा रहा है। इनसे बचना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि इनसे जीवन अशांत होता जा रहा है। शांतिमय और सदाचार जीवन हेतु स्वाध्याय, तत्त्वज्ञान, सचिंतन की अत्यन्त आवश्यकता है। इसके लिए हमें भौतिकता की अति से बचना होगा।
एक बालक मेले में अपने पिता की अंगुली पकड़ कर चल रहा था। मेले में लगी दुकान, झूले एवं अन्य वस्तुएँ देखकर यह बहुत आनंदित और खुश हो रहा था। अचानक उसके हाथ से पिता की अंगुली छूट गई। बालक पूरे मेले में घबराया और रोता हुआ घूमता रहा। यद्यपि मेले में अब भी वे वस्तुएँ विद्यमान थी जो पहिले थी, जिन्हें देखकर बालक प्रसन्न हो रहा था, वे वस्तुएँ अब उसे प्रसन्न नहीं कर पा रही थी। पिता की अंगुली मात्र छूटने से वह अत्यधिक दुःखी व घबरा रहा था। इसी प्रकार सभी वैभवादि होते हुए भी धर्म का सहारा धर्म का आश्रय, धर्म की पकड़ छूट गई तो कोई सुखी नहीं रह सकता है। उसे वैभव आदि में सुख नज़र नहीं आएगा। बालक का जो भ्रमण पहले सुख का कारण था फिर दुःख में बदल गया उसी प्रकार जो वैभव पहले सुखमय प्रतीत होता है वही दुःखानुभूति करा देता है। इसलिए धर्म का आश्रय लेकर प्रतिदिन
आत्मचिंतन हेतु थोड़ा-सा समय अवश्य निकालना चाहिए। इससे हमारे विचार, आचार और व्यवहार आनन्दयुक्त होते जाएंगे। ___ रोगों का शरीर और मन पर कुप्रभाव पड़ता है। इसलिए रोगी चिकित्सक 701
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