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________________ ख़ुशहाल एवं स्वस्थ बनाए रखने के लिए हम सब पर बहुत बड़ा दायित्व है। यदि हमने इस ओर क़दम नहीं बढ़ाए तो चाहे युवा वर्ग है या वृद्धजन कोई भी सुखी नहीं रह सकेगा। आज विडम्बना है कि परिवार में कोई गुत्थी उलझती है तो मिल-बैठकर उसका समाधान नहीं किया जाता है अपितु अदालतों के माध्यम से निपटाये जाते हैं। ऐसे में हमारा व्यवहार यह होना चाहिए कि बैठकर समझाहट से, नम्रता से झुक कर, प्रेम-स्नेह या दबाव से उसका समाधान किया जाना चाहिए। कहा-सुनी होने पर गांठ पड़ने से पूर्व समझदार को चुप्पी रख लेनी चाहिए। कटु वचनों को प्रसन्नता से पी लेना चाहिए। तभी इंसान का जीवन विकसित होगा, कुंदन की तरह चमकेगा। मनुष्य की सबसे बड़ी दुर्बलता है कि वह दूसरों के जीवन की ओर दृष्टिपात करता है, पर स्वयं को नहीं देखता। दूसरों को बिना माँगे सलाह देता है, सुझाव देता है जबकि स्वयं के जीवन में चरितार्थ नहीं करता। हमें स्वयं को देखना चाहिए। दूसरों के घर में क्या है, इसको देखने की बजाय स्वयं के घर को, अपने दायित्वों को नहीं भूलना चाहिए। दूसरा सो रहा है, जाग रहा है, खा रहा है या नहीं इसकी चिंता नहीं करके, स्वयं को जागृत करना चाहिए। हम निरंतर दूसरों को देखते हुए अपने अमूल्य मानव जीवन को खोते जा रहे हैं। स्वदोष दर्शन करके यदि उसका निराकरण नहीं करेंगे मात्र दूसरों को ही देखते रहेंगे तो अनेक बाधाएँ उपस्थित हो जाएगी। अधिक सुझाव देने से भी व्यवहार में बाधा आती है। क्योंकि एक तो इससे सामने वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त होती है। फिर आवश्यक नहीं है कि सभी सुझावों को माना जाएं। लेकिन नहीं मानने पर सामने वाले की नाराज़गी प्रकट होने लगती है। यथा - तुम सोचते हो कि जब मेरी बात मान्य नहीं होती है तो मैं क्या जानूँ। इस प्रकार के चिंतन से टकराव प्रारंभ होता है तथा संबंधों की मधुरता दूर होने लगती है, टूटन प्रारंभ होती है। जब व्यवहार में अपेक्षा भाव अत्यधिक बढ़ जाता है तभी समस्या उत्पन्न 68 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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