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ठहर गए ।
महाराज कुम्भकार के मंत्री पालक ने जैसे ही आचार्य स्कन्दक को देखा उसे अपने पूर्व के अपमान का स्मरण हो गया कि इसने अपने गृहस्थ जीवन में भरी सभा में मेरा अपमान किया था। अब मेरा समय आ गया है मैं अपने अपमान का बदला लेकर ही रहूँगा । यह दृढ़ निश्चय करके उसने वाटिका में रातों रात पाँच सौ हथियार गड़वा दिए और राजा से आकर कहा - महाराज ! आपके उद्यान में डाकू आकर ठहरे हैं वे आपसे आपके राज्य को हड़पना चाहते
हैं ।
राजा कुम्भकार ने आश्चर्य चकित होकर कहा - मंत्रीवर ! यह तुम क्या कह रहे हो । यह तुम्हारा भ्रम है। उद्यान में जैन श्रमण ठहरे हैं और उनके आचार्य स्कन्दक मेरे साले हैं। वे डाकू नहीं है ।
मंत्री राजन् यदि आपको विश्वास नहीं हो गुप्तचरों की सूचना के आधार पर भूमि खुदवा कर देख लीजिए कि वहाँ हथियार गड़े हुए हैं या नहीं ?
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कुम्भकार ने वास्तविकता को जानने के लिए, सच्चाई की परीक्षा के लिए प्रात: काल वाटिका की जमीन खुदवाई तो वहाँ से पाँच सौ हथियार प्राप्त हुए ।
राजा आग बबूला हो गया । उसका ज्ञान तिरोहित हो गया । अज्ञान के बादल छा गए। विवेक का दीपक बुझ गया और राजा का आचरण अंधा हो गया। राजा ने मंत्री से कहा तुमने बहुत बड़े संकट से उभारा है । इसलिए तुम्हारी इच्छानुसार साधुओं के दण्ड की व्यवस्था करो। मंत्री का षडयंत्र सफल हुआ। मन की मुराद पूर्ण हो गई। उसने योजना बनाई एक कोल्हू उठाकर तुरन्त उद्यान में पहुँचाया गया । ज्ञानियों ने कहा कि सोच कर समझ कर विचार किया करो । किसी भी कार्य को एकाएक मत करो, लेकिन क्रोधान्ध, विषयान्ध व्यक्ति कुछ नहीं देखते ।
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प्रात:काल की बेला में क्रोध में धमधमाता पालक शांतिपूर्वक अध्ययन कर रहे आचार्य स्कन्दक के पास गया। महाराज स्कन्धक, मैं एक-एक साधु को, तुम्हारे सामने घाणी में पीलूँगा फिर तुम्हारा नंबर है । आचार्य स्कन्दक ने कहा - बिना कारण यह सब क्या ? यदि तुम्हें पीलना ही है तुम मुझे पीला दो ।
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