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________________ हैं। वाणी पर असंयम अनर्थ एवं वैर की परम्परा को बढ़ाने वाले हैं। यह श्रृंखला कई जन्मों तक चलती है। बन्दूक की गोली या तलवार के प्रहार से होने वाला घाव तो दो-तीन माह में भर जाता है, परन्तु तीखे एवं कटुवचनों के प्रहार से होने वाला घाव जन्म-जन्मान्तर तक नहीं भरता। कहते हैं : दुर्योधन जब पाण्डवों का नवीन भव्य राजमहल देखने जाते हैं तब द्रौपदी महल के झरोखे में बैठी हुई थी। दुर्योधन राजमहल की इस विशेषता से अनभिज्ञ थे कि कहाँ जल है कहाँ भूमि । जहाँ जल था वो भूमि-सी प्रतीत हो रही थी, जहाँ भूमि थी वो जल प्रतीत हो रहा था। दुर्योधन जल को ज़मीन समझकर कुदने लगे और ज़मीन को जल समझकर शीघ्रता से चलने लगे जिससे उनके कपड़े भीग गए। द्रौपदी यह देखकर हँसती है और व्यंग्यपूर्ण वाणी में कहती है आख़िर अंधे के पुत्र अंधे ही होते हैं।' इस तीव्र व्यंग्यवचन रूपी बाण से दुर्योधन के तन-बदन में आग लग गई। उसने मन-ही-मन द्रौपदी से बदला लेने का विचार किया। परिणामस्वरूप उसने पाण्डवों को जुआ खेलने के लिए ललकारा। जुए में हारने पर द्रौपदी को दाँव पर रखा गया। उसे जीतकर और उससे बदला लेने की तीव्र अभिलाषा के अनुसार द्रौपदी को चीरहरण करने हेतु बुलवाया। जिस महाभारत का बीजारोपण हुआ इसके पीछे व्यंग्यपूर्ण वाणी ही उत्तरदायी थी। अगर द्रौपदी वाणी संयम रखती तो यह अनर्थ नहीं होता। ___वाणी पर संयम हेतु विचारों का संयमित होना अत्यन्त आवश्यक है। मन का काम सतत् चिंतन-मनन करना तथा सोचना विचारना है। चाहे वह अच्छा विचार करे या बुरा, दुश्चिन्तन करें या सुचिन्तन । कुछ-न-कुछ तो करता ही रहता है। अगर आप सुविचार के धनी नहीं बनेंगे तो आपका मन बुरे विचारों में प्रवृत्त होगा। विचारों के स्त्रोत मन को सुचिन्तन, आध्यात्मिक चिन्तन की ओर प्रवृत्त करना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा साधु हो या गृहस्थ, राजा हो रंक। सृष्टि का कोई भी जीव हो सभी को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। ___ दण्डकारण्य के महाराजा कुम्भकार की रानी पुरन्दरयश आचार्य स्कन्दक की बहन थी। एक बार आचार्य स्कन्दक अपने पाँच सौ शिष्यों सहित अपनी बहन को प्रतिबोध देने के लिए दण्डकारण्य आए और शहर की वाटिका में | 57 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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