________________
नारायण आज तो सूर्य नारायण पश्चिम से निकल आया जो समय पर तुम आ गए। वहाँ मौजूद सारे लोग बॉस की इस बात पर खिलखिलाकर हँस पड़े और नारायण मायूस हो गया। आज उसने यदि कोई अच्छी आदत अपनानी चाही तो उसे प्रतिफल के रूप में तारीफ नहीं बल्कि व्यंग्यबाण सुनने को मिले। काश! नारायण के बॉस शर्माजी के साहब की तरह दो मीठे बोल कह देते तो उसे भी अच्छी आदत अपनाने की प्रेरणा मिलती। ___ मनुष्य विवेकी है। यदि कोई छोटा बच्चा किसी जानवर को सताता है, पत्थर मारता है तो उस बच्चे को माता-पिता कहते हैं बेटा ! ऐसा मत करो। ऐसा करना अच्छा नहीं है। उसे शिक्षित करते हैं। गलत काम करने के लिए मना करते हैं, पर यदि एक शिक्षित व्यक्ति ही गालियाँ देने लग जाए, मारपीट करे तो शिक्षित एवं अज्ञानी में क्या अन्तर रह जाएगा। आज हम देख रहे हैं अग्नि का प्रयोग सार्वजनिक सरकारी सम्पत्ति, कार्यालयों आदि को जलाने में किया जा रहा है।
सर्वत्र तोड़फोड़ करते हुए आग लगाकर सब कुछ स्वाहा करने वाले विद्यार्थी यदि अपने अज्ञान को जलाएँगे तो वे ज्ञानी बन जाएँगे, पर विडम्बना है वह अपने अज्ञान को आग नहीं लगाते, अज्ञान का निवारण करके ज्ञान के प्रकाश को प्रसारित करने वाले विद्यालय-महाविद्यालयों को आग लगाते हैं।
श्रेष्ठ कार्यों के लिए विचारों को श्रेष्ठ रखना होगा। इस हेतु विचार और वाणी पर अंकुश होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि आप वाणी और विचारों की पवित्रता को स्थायी बनाना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें विचार और वाणी के स्त्रोत को ढूँढ़ना चाहिए। विचार का स्त्रोत मन है, वाणी का उद्गमस्थल वचन है। मन से ही सम्पूर्ण शुभ-अशुभ विचार उत्पन्न होते हैं और वाणी से अच्छेबुरे वचन निकलते हैं । जैसा हमारा मन होगा वैसे ही वचन होंगे। मन को श्रेष्ठ विचारों हेतु अभ्यस्त किया जाए, आध्यात्मिक चिंतन, स्व-पर कल्याण के चिंतन का आधार बनाया जाए प्रशिक्षण से पवित्र किया जाए तो निःसन्देह यह अपवित्र, अहितकारी मनन चिंतन नहीं करेगा। जब मन उत्तम होगा तो विचार भी उत्तम होंगे। हमें मन को बुरे विचारों से हटाकर सुसंस्कृत करना चाहिए। दृढ़तापूर्वक बुरे विचारों को खदेड़ना चाहिए। यदि हम विचारों और वाणी दोनों
| 55
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org