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________________ एक ओर बी दोनों आज भी अपनी संस्थाओं के जरिए ज़रूरतमंद लोगों की सहायता कर रहे हैं। इंसान जैसा मन से सोचता है और वाणी से बोलता है वैसे ही परिणाम उसे प्राप्त हुआ करते हैं । अब यह हमारे हाथ में है कि हम गले मिलने की बात करते हैं या गला काटने की । मेरी समझ में सृष्टि में कोई भी वस्तु सर्वथा हेय या उपादेय नहीं है । उपयोग के आधार पर हेय - उपादेय भाव आधारित है जैसे अग्नि अच्छी भी है और बुरी भी । दीपक अच्छा भी है और बुरा भी। जब अग्नि खाना बनाने के काम आवे या उसका सदुपयोग हो तो वह अच्छी है । किन्तु उससे रुई के गोदाम में आग लग जाए तो वह अग्नि बुरी है। दीपक प्रकाश करे, अंधकार में अध्ययन में सहायक हो तो वह अच्छा है । किन्तु वही दीपक पुस्तक को जला दे तो बुरा है। इसी प्रकार वाणी है, शब्द है । ये स्वयं में न तो अच्छे हैं न ही बुरे । जिनेन्द्र का गुणगान करने में किसी को सन्मार्ग दिखाने में, सम्मान करने में शब्द उपादेय है और किसी को गाली दे तो शब्द हेय है। किसी को 'राम' कहने से व्यक्ति ख़ुश होता है 'रावण' कहते ही झगड़ा हो जाता है। एक शब्द से ख़ुशी है एक से दुःख है । शब्द का अच्छा बुरा होना उपयोग करने वाले पर निर्भर है 1 यही वाणी जब भगवान महावीर जैसे तीर्थंकर पुरुषों के मुख से निकलती है तो कइयों का जीवन बदल देती है और हिटलर, सद्दाम या राज ठाकरे के मुँह से निकलती है तो कइयों का जीवन समाप्त कर देती है । D अक्सर हम किसी भी चीज़ की बुराई को धड़ल्ले और बेबाकी से कर जाते हैं लेकिन किसी के उत्साहवर्धन के लिए हमारी ज़ुबान से शब्द बड़ी मुश्किल से निकलते हैं। याद रखिए किसी की तारीफ में बोले गए कुछ उत्साहवर्धक शब्द ज़िंदगी तक बदल देने की क्षमता रखते हैं। वहीं किसी को व्यंग्यबाणों से धराशायी करना इसका विपरीत परिणाम देता है। अरे वाह ! शर्मा जी आज तो आप सही समय पर ऑफिस आ गए। भई, बहुत बढ़िया । लेटलतीफ शर्माजी ने जैसे ही बॉस के मुँह से ये बात सुनी, ख़ुश हो गए। उस दिन के बाद वे पूरी कोशिश करने लगे ऑफिस में नियत समय पर पहुँच जाने की। इसमें सही काम करने पर तारीफ़ पाने का मोह तो था ही साथ ही उन्हें अपने लेटलतीफ के खिताब से भी मुक्ति मिल गई। वहीं दूसरी ओर शर्माजी की ही तरह ऑफिस देर से पहुँचने के आदी नारायण का स्वागत किया। वाह ! 54 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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