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के बाद वे वापिस लौटे तो देखा कि वे व्यक्ति आपस में मारपीट, गाली-गलौज कर रहे थे, फिर उन्होंने सोचा ऐसा प्रेम किस काम का जो स्व-पर को दुःख में डाल दे।
धन-वैभव का उपयोग,व्यसन, फैशन, विलासिता आदि में करना ग़लत है। धार्मिक प्रभावना, आत्म कल्याण, दीन दुःखी की सहायता के क्षेत्र धनसदुपयोग के क्षेत्र हैं।
हम व्यसन में फँसकर तनाव, अशांति, दरिद्रता को तो बुलावा दे रहे हैं साथ ही असाध्य रोगों के जरिए मौत को भी बुलावा दे रहे हैं। इससे लोभी निर्दयी डॉक्टरों के घर भी भर रहे हैं तथा उनके विचारों को कुत्सित भी कर रहे
जटाशंकर सिगरेट, तम्बाकू, गुटखे का व्यसनी था। वह रास्ते में खोया हुआ जा रहा था। उसे तलब लगी। उसने जेब में हाथ डाला उसकी दोनों जेब खाली थी। उसने आस-पास नज़र दौड़ाई। एक सूटेड आदमी नज़र आया वह उसके पास जाने में पहले तो हिचकिचाया पर बाद में गया। जटाशंकर ने कहा - महाशय आपके पास गुटखा या बीड़ी है। उस व्यक्ति ने जेब में हाथ डालकर चार-पाँच गुटखे की पूडी और बीड़ी का बंडल थमाते हुए कहा लो ये खाते-पीते रहना। जटाशंकर आश्चर्य में पड़ गया। उसने कहा - महाशय! आप तो बहुत ही उदार हैं । आपकी मेरे से कोई जान-न-पहचान । फिर भी.....
उस व्यक्ति ने कहा में उदार नहीं हूँ। मैं पेशे से डॉक्टर हूँ और मेरे बेटे के दवाई की दुकान है। मैं मरीजों को बीड़ी, सिगरेट, गुटखे के नुकसान बताता थक गया। एक-एक मरीज पर आधे से एक घंटा देता तभी मरीज देख पाता था। इससे मेरा धंधा बिगड़ने लगा तथा मेरे पुत्र की दुकान पर बिक्री कम होने लगी।हमने सोचा व्यसन के चक्कर में फँसा आदमी नहीं संभल रहा है, तो हम क्यों न संभल कर अपना घर भरें। इसलिए गुटखा आदि बाँटता हूँ। प्रचार करता हूँ। जिससे मेरा अंधा अच्छी तरह से चले। यदि लोग इनका उपयोग नहीं करेंगे तो कैंसर नहीं होगा। कैंसर नहीं होगा तो मेरा और मेरे बच्चे का व्यापार बन्द हो जाएगा। डॉक्टर के इस व्यंग्यबाण को वह व्यक्ति समझ गया और उसने गुटखे
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