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प्राक्कथन
अध्यात्म यात्रा का पथ अत्यन्त दुरुह है । भोग विलास के दलदल में फँसा सामान्य व्यक्ति इस मार्ग का पथिक नहीं बन सकता है। परिणाम स्वरूप एक
ओर वह संसार की धारा में विभिन्न योनियों में विचरण करता हुआ मुक्ति मंज़िल की ओर अग्रसर होने में असमर्थ रहता है। दूसरी ओर भौतिक चकाचौंध के दुष्चक्र में फँसने के कारण तनाव युक्त होता जा रहा है। ऐसी विषम परिस्थिति में पथ प्रदर्शक की आवश्यकता है जो मंज़िल तक पहुँचने के मार्ग से परिचित करवा दे। श्रेष्ठ व्यवहार, मानसिक शांति, अध्यात्म की दशा का मालिक बना दे।सम्यक् पथ-प्रदर्शन के लिए गुरु ही वह अखण्ड ज्योति है जो अन्तर के अणु-अणु को परम प्रकाश से स्नान करा सकते हैं।
गुरुओं की इसी महान परम्परा के गगन मण्डल में देदीप्यमान सितारा प.पू. विचक्षण ज्योति, प्रज्ञा भारती, महामांगलिक प्रदात्री, आस्था की आयाम प्रवर्तिनी महोदया श्री चन्द्रप्रभा श्रीजी म.सा. ने अपने 55 वर्ष के संयम जीवनपर्याय में एक लाख से भी अधिक कि.मी. के विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करते हुए लाखों लोगों को अपने ओजस्वी और आध्यात्मिक वचनामृत से सिंचित किया है। आप अध्यात्म की गहराई, अनुभव की ऊँचाई, जीवन की सच्चाई के अपूर्व चिन्तन से युक्त है। आप आध्यात्मिक प्रवचन के माध्यम से संगठन, शिक्षा, सेवा, स्वावलम्बन, संस्कार आदि के क्षेत्र में समय-समय पर समाज को नूतन निर्देश-सन्देश से नवीन दिशा दे रहे हैं।
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