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________________ काई से आच्छादित था।एक व्यक्ति ने काई से पूछा- तुम्हारे आधार से जीवित रहने वाली इस काई ने तुम पर अधिकार कैसे जमा लिया है ? सरोवर ने प्रत्युत्तर दिया- मेरी निष्क्रियता ने ही मुझे परतंत्र बना दिया है। इसके लिए हमें अभिमान गति का त्याग करके विनम्र, सहज, सरल गति का बनना होगा क्योंकि सरल गति के बिना सिद्ध गति नहीं होती है। बाण सीधा होता है, इसलिए वह अपने लक्ष्य को बेध देता है किन्तु धनुष टेढ़ा-मेढ़ा है इसलिए वह अपने स्थान पर ही पड़ा रहता है। विकारों के टेढ़ेपन का त्याग करने पर ही विचारों की निर्मलता का अनुभव होता है। ___ आज हम देखते हैं कि शिक्षा का अर्थ और उद्देश्य बिल्कुल बदल गया है। हमारे चिंतन का विषय एक अच्छे नागरिक के रूप में होना चाहिए। जबकि आज का शिक्षित कहा जाने वाला समाज केवल साक्षरता को ही शिक्षा मानता है। वस्तुत: यह उचित नहीं है। आज भी हम अनेक ऐसे व्यक्तियों को देखते हैं जिन्होंने कभी स्कूल में क़दम भी नहीं रखा किन्तु उनकी सूक्ष्म, पैनी दृष्टि में अनेक समस्याओं तक पहुँचने एवं समाधान करने की क्षमता है। जो उन्हें सैकड़ों साक्षर व्यक्तियों से भी बेहतर साबित करती है।मात्र पुस्तकें पढ़ लेने से शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होता क्योंकि कोरी अक्षर-शिक्षा जीवन का विकास नहीं कर सकती। । ऐसा हुआ, ड्यूटी के दौरान एक टिकट चैकर ने अपने ग्रामीण पिता को बिना टिकट पाया। अफसरों से प्रशंसा पाने के लिए, उसने सभी के सामने पिता को भला-बुरा कह, नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए नियमानुसार दंड सहित किराया वसूल लिया। मुख्यालय पहुँच कर उसने अपने निरीक्षक को बताया कि उसने कर्तव्यपालन में अपने पिता को भी नहीं छोड़ा। इंस्पेक्टर ने घटना लिखित में मांगी ताकि उच्च अधिकारियों से उसे पुरस्कृत करा सके। तीसरे दिन मुख्यालय से इंस्पेक्टर को निर्देश मिले कि उसे पुरस्कार पाने के लिए मुख्यालय भेजा जाए। टिकट चैकर दूसरे दिन वहाँ पहुँचा । उच्च अधिकारियों ने उसकी कर्तव्यपरायणता की सराहना करते हुए इनाम के रूप में उसे पचास रुपए प्रदान किए और एक बंद लिफाफा निरीक्षक के लिए दिया। अगले दिन टिकट चैकर ने लिफाफा इंस्पेक्टर को सौंप दिया। लिफाफे 30/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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