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________________ तुम भी अपने होने में राजी हो जाओ तो तुम्हारे भी सभी दुःख जाते रहेंगे और सुखी हो जाओगे, पीड़ाएँ जाती रहेंगी, परेशानियाँ कम हो जाएगी। स्वयं के पास जो कुछ है उससे हम संतुष्ट नहीं हैं भीतर में और अधिक पाने की प्रलोभन-प्रवृत्ति भी हमारी अशांति का एक कारण है। व्यक्ति को जब ज्ञान से कहीं अधिक अभिमान हो जाता है तो वह पानी में उठते हुए बुलबुले की तरह अस्थिर हो जाता है, यह भी अशांति का कारण है। ___इसी तरह जीवन जीते रहेंगे तो क़दम-कदम पर हमें अशांति के शूल चुभते रहेंगे। हमें उन कारणों का निवारण करते हुए स्वयं के भीतर सकारात्मक सोच को बढ़ाना होगा। तभी हम शांति प्राप्त कर सकेंगे। भीतर में सकारात्मक धारा मन पर विजय प्राप्त करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अधिकांश व्यक्ति यह कहते हुए पाए जाते हैं कि मन को जीतना बहुत कठिन काम है। बड़े-बड़े योगी भी असफल हो गए हम तो साधारण व्यक्ति हैं। यह सोच ग़लत है। कोई भी कार्य असंभव नहीं है। वस्तु को प्राप्त करने की व्यक्ति की प्रबल रुचि और उसे प्राप्त करने का प्रबल पुरुषार्थ सफलता के लिए पर्याप्त है। व्यक्ति पुरुषार्थी हो तथा वस्तु प्राप्ति की तीव्र अभिलाषा हो तो कोई भी कार्य कठिन नहीं है। मन को वश में करने का सर्वश्रेष्ठ एवं सरल उपाय के रूप में हमें इस मंत्र का उपयोग करना चाहिए - . 'अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः' अभ्यास और वैराग्य, इन दोनों से मन का विरोध होता है। भगवद्गीता में कर्मयोगी श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था - 'अभ्यासेन तु कौन्तेय! वैराग्येण च गुह्यते।' हे अर्जुन! अभ्यास और वैराग्य से मन का निरोध होता है। वैराग्य एवं अभ्यास की निरंतरता से चंचल मन को वशीभूत किया जा सकता है। सर्कस कम्पनी वाले हाथी, घोड़े, कुत्ते को भली-भाँति कार्य के अनुसार शिक्षा देकर अपने वश में कर लेते हैं । वे अपनी चंचलता का त्याग कर अपने मालिक के निर्देशानुसार करतब दिखाते हैं, जिससे दर्शक आश्चर्यचकित हो जाते हैं। किन्तु इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए हम 24 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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