SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घोड़ों का नहीं सारथी का है। ये इन्द्रियाँ रेल के डिब्बों की तरह हैं जिसका इंजन मन है । यदि डिब्बों को मन रूपी इंजन नहीं खींचेगा तो इन्द्रियाँ रूपी डिब्बे आगे नहीं बढ़ सकते । स्वयं दिशा नहीं बदल सकते। उन्हें तो जिस दिशा में इंजन ले जाएगा वह उसी तरफ चले जाएंगे। 'मन की दिशा और दशा ही इन्द्रियों की दिशा और दशा है । इन्द्रियों को वशीभूत करने के लिए मन को वशीभूत करना आवश्यक है। मन सुधरा तो समझो सब कुछ सुधर गया और मन बिगड़ गया तो सब कुछ बिगड़ गया । मन चंगा तो कठौती में गंगा । 1 जब हमारे मन में अशुभ विचार आते हैं तब हम उनको भगाते नहीं हैं, खदेड़ते नहीं है, अपितु विचारों की श्रृंखला में बह जाते हैं । और वे विचार हमारे मन में प्रवेश करके हमें दूषित बना देते हैं । यदि कोई व्यक्ति किसी की निंदा करता है तो करने वाला तथा सुनने वाला घंटों तक नहीं थकते, पर यदि प्रशंसा करनी हो तो दस-पन्द्रह मिनट भी घंटे के समान लगते हैं। सुनने वाले को लगता है जैसे वह बोर हो रहा है । हमें कभी-भी अशुभ विचारों को अपने भीतर दबा कर नहीं रखना चाहिए। यदि हम उनका संचय करेंगे तो एक न एक दिन विस्फोट होगा और सारे जीवन को ले डूबेगा । साथ ही आस-पास का वातावरण भी दूषित हो जाएगा। इस प्रकार के विस्फोट बार-बार होने पर धर्म, समाज और व्यक्ति सभी प्रभावित होते हैं। गंदे विचारों की परतें मन को अशुद्ध एवं अस्वस्थ बना देती हैं । निर्मल और श्रेष्ठ जीवन के लिए हमें अच्छा चिन्तन करना चाहिए, उत्तम संगति में रहना चाहिए। जिस वातावरण, दृश्य या भोजन से मन विकृत हो, पतन की ओर जाए उससे हमें दूर रहना चाहिए । मान लीजिए कि आप मनोरंजन के लिए सिनेमा देखने जाते हैं सीरियल या नाटक देखते हैं तो अधिकतर यही कहते हैं कितने अच्छे गाने हैं, मधुर संगीत है, दृश्य बहुत रमणीय है, कपड़े कितने सुन्दर हैं, मकान आलीशान है, फाइटिंग में तो मज़ा आ गया। इसी तरह की नोंक-झोंक हमें अच्छी भले ही लगे, पर जीवन का निर्माण नहीं होने वाला है । इसकी बजाय हम यह ग्रहण करें कि उस व्यक्ति का जीवन सादगी युक्त होते हुए भी कितना रमणीय, सुन्दर Jain Education International For Personal & Private Use Only | 19 www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy