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हुआ सिलसिला चोरियाँ, वेश्यागमन और लुटेर बनने में तब्दील हो गया और एक दिन पुलिस के हाथों वे पकड़े गये। प्राणदंड की सजा सुनायी गई। ___ फ्रेन्कुइस कारावास में अपने स्नेही-स्वजनों से अंतिम बार मिल रहे थे। अचानक न्यायालय ने सजा बदल दी। प्राणदंड की जगह उन्हें देशनिकाला दिया गया और तीन दिन में पेरिस छोड़कर चले जाने का उनको आदेश मिला।
सजा में परिवर्तन करवाया था फादर ग्युलैभी ने । पेरिस में फादर ग्युलैभी का अच्छा प्रभाव था।आचरण और उपदेशों से उनका महान् व्यक्तित्व पूरे देश में छाया हआ था। उन्होंने फ्रेन्कइस की प्राणदंड की सजा सुनी और उनका हृदय दुःखी हो गया। 'फ्रेन्कुइस को सुधरने का एक और मौका मिलना चाहिए, संभव है उसकी जीवनधारा ही बदल जाए।' उन्होंने फ्रेन्च सरकार से फ्रेन्कुइस को क्षमा करने की प्रार्थना की। सरकार ने सजा बदल दी।
फ्रेन्कुइस जब पेरिस छोड़कर जाने लगे तब फादर ग्युलैभी नगर के दरवाज़े तक पहुँचाने गये। फ्रेन्कुइस को पता चल गया था कि प्राणान्त-दंड से बचाने वाले फादर ग्युलैभी ही हैं। उन्होंने फादर की आँखों में करुणा का समुद्र देखा। मुख पर प्रेम का प्रकाश देखा।
एकांत में जीवन व्यतीत करते उन्हें कभी स्नेहीजन याद आते तो कभी फादर ग्युलैभी की प्रेमपूर्ण मुखमुद्रा याद आती है..... इन स्मृतियों ने उसके मर्मस्थान का स्पर्श किया। उनके भीतर नयी जीवनधारा मोड़ लेने लगी और उन्होंने नया जीवन जीने का संकल्प किया। उन्होंने अपनी पीड़ा, व्यथा, वेदना और पश्चात्ताप को काव्यों में उतारा और वेदना भरे काव्यों का एवं करुणापूर्ण साहित्य का सृजन किया। यही संवेदनाओं से भरे काव्य फ्रांस में लोकप्रिय बन गए। फादर ग्युलैभी ने जब फ्रेन्कुइस के काव्यों को पढ़ा तो उनकी आँखें सजल हो गई।
फ्रेन्कुइस की गणना फ्रांस के श्रेष्ठ कवि के रूप में और श्रेष्ठ साहित्यकार के रूप में आज भी की जाती है।
पाप की संगति इंसान को गिरा देती है और पुण्य की संगति लुटेरे को भी महान लेखक बना देती है। तभी तो कहा गया है -
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