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________________ चाहती हूँ। कृपया इसे अभयदान दे दो। यह था उदार हृदया माँ का वात्सल्य, प्यार और प्रेम।हम जैसे-जैसे स्वयं को आधुनिक कहने लगे हैं, समय को पहचाने बिना उसमें गोते लगा रहे हैं वैसे-वैसे माता-पिता के सम्मान को, ऋण को भूल रहे हैं। जो माँ प्रात:काल सबसे पहले उठकर घर के कार्यों में लगती, देर रात तक कार्य करती, गीले में स्वयं सोती पर अपनी सन्तान को सूखे में सुलाती, स्वयं भूखी रहती है पर अपनी सन्तान का भरण-पोषण करती है। उस माँ को पता है समय के फेर में सब कुछ बदल गया है। उसे कोई पूछने वाला नहीं है। पुत्र की शादी होने पर उसे स्वयं को स्वयं का प्रबंध करना पड़ेगा। बीमार होने पर कोई बेटा यह नहीं सोचेगा कि वह रात में ठिठुर तो नहीं रही, दवा उसके पास है या नहीं। एक माँ के चार बेटे माँ के चार टुकड़े तो नहीं कर सकते। एक-एक माह अपने पास धर्मशाला के राहगीर की तरह रखते हैं। या पैसे का प्रबन्ध करके उसे स्वयं के हाल पर छोड़ देते हैं । विडम्बना है कि चार लड़के मिलकर भी एक माता-पिता को पाल नहीं सकते, पर अकेली माँ चार को पाल लेती है। वह यह नहीं सोचती कि चार को कैसे पाले? आलीशान मकान में पुत्र अपने माँ-बाप को नहीं रख सकते, रखते हैं तो पूर्णतया सेवा देखभाल नहीं करते। वह यह भूल जाते हैं कि हमारी सन्तान भी हमारे इस दुव्यवहार से शिक्षा ले रही है। - ऐसी कई घटनाएँ हमारे सामने हैं जिसमें हम देखते हैं कि पुत्र अपने दादा-दादी का तिरस्कार देखकर अपने माँ-बाप का हृदय बदल देते हैं। एक बुढ़िया माँजी के एक बेटा था।माँजी ने अत्यधिक कष्ट उठाकर बेटे को बड़ा किया पढ़ाया-लिखाया तथा होशियार किया। बेटे ने अपना धंधा करना शुरू किया। बुढ़िया बहुत आशावान् थी। उसके मन में सदैव यही आशा रहती है कि मेरा बेटा अब कमा रहा है। मेरे सुख के दिन आ गए हैं। बहू भी आएगी घर में खुशहाली छा जाएगी। बेटे का विवाह किया गया। बहू आई शुरू में तो बहू शांत प्रकृति की थी पर शनैः शनैः उसकी प्रकृति में अन्तर आने लगा। बुढ़िया के पौत्र हुआ। बुढ़िया काफी प्रसन्न रहती थी। धीरे-धीरे पौत्र बड़ा होने लगा। इधर बहू ने माँजी की उपेक्षा करनी प्रारंभ कर दी। जब पति घर में होता तब तो बहू ढंग से | 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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