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________________ वहाँ की शिक्षा-पद्धति का अध्ययन करना है। भारतीय शिक्षा-पद्धति में क्या परिवर्तन किया जाए इसकी रिपोर्ट तुम्हें देनी है। वायसराय के समक्ष आशुतोष तो क्या किसी भी भारतीय की बोलने की हिम्मत नहीं थी। कोई उनके समक्ष बोल नहीं सकता था, बैठ नहीं सकता था, पर वायसराय के समक्ष अत्यधिक गहन अर्थ से युक्त सीधे-सादे शब्दों में आशुतोष ने कहा सर मैं माँ से पूछकर ज़वाब दूंगा । वायसराय क्षणभर के लिए चमक गए, पर चुप रहे। ____ कल्पना कीजिये यदि आपके समक्ष इस प्रकार का तो क्या, थोड़ा भी ऊँचे पद का या किसी विशेष स्थान का ऑफर आए तो क्या आप अपने माँबाप से पूछकर जवाब देने का कहेंगे? कई युवा तो इसमें माँ से क्या पूछना है' यह कहते हुए हिचकिचाते भी नहीं है। बल्कि यह कहते हैं कि मेरी माँ तो पुराने ख्यालों की है वह आधुनिक जमाने को क्या समझे ? उनके हमारे सोच में बहुत अन्तर है, पर वास्तव में जीवन की शालीनता, अनुभव की परिपक्वता, संस्कारों का संरक्षण जो उनमें होता था वर्तमान युग में वो हमारे में नहीं है। हमारी मानसिकताएँ भौतिक चकाचौंध के युग में बदलती जा रही है। आशुतोष घर आए, मन में विदेश जाने का, नवीन अध्ययन करने का स्वप्न भी था। घर आने पर कृशकाय, जर्जर, सिकुड़े हुए शरीर वाली नब्बे वर्ष की माँ जो कि खाट पर लेटी हुई थी उनके चरण स्पर्श किया, और कहा- माँ, मुझे विदेश जाना है। वायसराय मुझे आग्रह पूर्वक भेज रहे हैं । माँ ने पूछा- बेटा, किसलिए? आशुतोष – माँ! भारतीय शिक्षा-पद्धति में क्या-क्या परिवर्तन करने हैं इसका अध्ययन करके, सर्वे करके बताना है यहाँ क्या-क्या परिवर्तन होना चाहिए। वायसराय द्वारा मेरे रहने, खाने आदि की सम्पूर्ण व्यवस्था कर दी गई है। माँ - आशुतोष हमारी शिक्षा पद्धति में क्या कमी है? तक्षशिला, नालन्दा में तो विदेशी लोग आकर अध्ययन करते थे। फिर बेटा विदेश में धन तो मिलेगा पर धर्म सुरक्षित रहेगा इसकी क्या गारंटी है ? तू मत जा। तुम्हारी माँ यह नहीं चाहती कि तू विदेश जाए। धर्म संकट में फँसे आशुतोष सोचने लगे कि इधर माँ की आज्ञा है जिसे मुझे शिरोधार्य करना है, उधर वायसराय का आदेश कि जिसकी आज्ञा का मुझे 114|| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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