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________________ आनन्दपुर नगरी में गुरु गोविंद सिंह प्रवचन दे रहे थे। कुछ समय प्रवचन देने के पश्चात् उन्होंने जल पीने की इच्छा प्रकट की।गुरुजी ने कहा- जिसके हाथ पवित्र हो, वह आधा लोटा जल लेकर आ जाए। एक धनी व्यक्ति ने अन्य भक्तों से कहा कि आप लोग तो दिन-रात सेवा कार्य करते ही रहते हैं आज मुझे सेवा का अवसर दें। उस धनिक ने जल लाकर गुरुजी को दिया। बर्तन पकड़ाते हुए गुरुजी के हाथों का स्पर्श उस धनिक के हाथों से होने पर गुरुजी ने कुछ गंभीर होकर कहा - क्या तुम कोई काम नहीं करते हो। धनिक ने कहा - गुरुजी मेरे बड़ी-बड़ी पाँच फेक्ट्रीयाँ हैं । क़रीब 60 नौकर चाकर उसमें काम करते हैं। आलीशान मकान है। गुरुजी ने कहा- इतने कोमल हाथ तो उसी के हो सकते हैं जो आराम तलब वाले हो, दूसरों की सेवा पर आश्रित हो। धनी व्यक्ति ने कहा – गुरु महाराज! क्या करूँ। इतने नौकर चाकर हैं कि हाथ से काम करने का अवसर ही नहीं मिलता। उसी समय गोविंदसिंह ने जल का पात्र नीचे रखते हुए कहा -- तुमने सदैव दूसरों से सेवा कराई है। स्वयं नहीं की है। जिन हाथों ने सेवा नहीं की वे पवित्र कैसे हो सकते हैं। इसलिए यह जल ग्रहण करने योग्य नहीं है। धनिक व्यक्ति पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसने दूसरों की सेवा करना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और वह दिन-रात सेवा कार्य में लग गया। यह भी अत्यन्त विचित्र बात है कि कुछ लोग स्वार्थवश सेवा करते हैं, कुछ धन के लोभ में सेवा करते हैं। डॉ. शंभुलाल मरीज वर्मा जी को दिलासा दे रहे थे। चेक-वैक करने के बाद कुछ दवाएँ देते हुए उससे बोले – ये दवाएँ लेते रहें और हर हफ्ते बाद आकर मुझे दिखा दिया करें। पैर का दर्द धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। चिंता की कोई बात नहीं। वर्मा जी बोले - डॉक्टर साहब, अगर दर्द आपकी टांग में होता, तो मेरे लिए भी चिंता की कोई बात नहीं होती। एक व्यक्ति की सेवा के माध्यम से नाम, रूपया कमाने की बहुत इच्छा हुई। उसने अपनी झोंपड़ी के सामने दलदल में से कार निकलवाने का कार्य किया। एक निश्चित दूरी थी जहाँ आने-जाने वाली कार फँस जाती थी वह दो-चार आदमियों को बुलाकर कार निकलवाता लोग इनाम के रूप में 10-20 108 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003884
Book TitleBahetar Jine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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