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प्रेम किया, किसी पर क्रोध किया, किसी को क्षमा किया, किसी से क्षमा माँगी, लेकिन रात! रात में केवल शैतान जागता है इसलिए काम-भोग का शैतान ही मनुष्य पर सवार रहता है। सारा शरीर सो जाता है लेकिन भीतर का शैतान मनुष्य को आन्दोलित और उद्वेलित करता है।
बौद्ध धर्म शैतान को 'मार' कहता है और कामदेव के जितने नाम हैं उनमें 'मार' भी एक है। अब 'मार' का संधि-विच्छेद करते हैं, इसमें तीन अक्षर हैंम+आ+र-अब इसे उलटिये र+अ+म= राम। जिसका दिन राम है उसकी रातें भी राममय होती हैं और जिसके दिन काममय हैं उसकी रातें कभी राममय नहीं हो सकती। या तो राम या मार।
जहाँ राम तहाँ काम नहीं, जहाँ काम नहिं राम। ___'तुलसी' दोनों ना रहे, राम काम इक ठाम।। दोनों एक स्थान पर नहीं रह सकते या तो राम रहेगा या काम।हम सोचें कि एक ही पात्र में दूध और दही भी रह जाए, जहर और अमृत भी एक ही पात्र में रख लें,यह संभव नहीं है। हम अपना जीवन काममय जीना चाहते हैं और दस-पंद्रह मिनट के लिए 'राम-राम' कर लेते हैं। हाय राम! तुम्हें भी क्या अँची कि दस-पंद्रह मिनट के लिए राम-राम करने को तत्पर हो गए। अच्छा ही होता काम-काम' ही करते।मंदिर में जाते हुए भी तुम्हारी दृष्टि चंचल बनी रहती है। तुम वहाँ से भी जितेन्द्रिय होने का पाठ लेकर नहीं आते। जबकि मंदिर में प्रवेश करते हुए कहते हो निसिही-निसिही'
और आते हुए कहते हो 'आवस्सहि-आवस्सहि। मंदिर में जा रहे हैं संसार को छोड़कर, बाहर आ रहे हैं परमात्मा को अपने साथ लेकर! पर क्या सचमुच ऐसा हो पाता है?
तुम चंदन का तिलक लगाते हो किसलिए? क्या माथे पर ठंडक पहुँचानी है, नहीं। ठंडक तो क्रोध को क्षमा से, प्रेम से पहँचानी है। लेकिन मैंने पाया है कि जो जितने बड़े-बड़े तिलक लगाते हैं वे उतनी ही बड़ी लड़ाइयाँ लड़ते हैं, आग-बबूला होते हैं, एक-दूसरे पर छींटाकशी करते हैं। प्रेम से,क्षमा से हमारा चित्त शांत होता है, तिलक इसलिए किया जाता है कि हे परमात्मा! मैंने तुम्हें स्वीकार किया, तुम्हारी वाणी को, तुम्हारे मार्ग को मैंने वरण किया।
'जो रातें व्यतीत हो जाती हैं वे पुनः लौटकर नहीं आती। जो मनुष्य अधर्म कर रहा है उसकी रातें निष्फल चली जाती हैं।'
हिंसा और अधर्म को मनुष्य ने अपना स्वभाव बना लिया है। जितनी क्रूरताएँ मनुष्य करता है, इस सृष्टि में अन्य कोई नही करता। आपने सुना होगा निकोलाई
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