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मालूम होता है। जो खारा पानी पीने के अभ्यस्त हो चुके हैं, उन्हें मीठा पानी पिलाओ तो वे इसे ही खारा कहेंगे।अभ्यास ही ऐसा है। किसी बीमार को मिठाई खिलाओ तो उसे वह बिल्कुल बेस्वाद लगेगी। मिठाई बे-स्वाद नहीं है, तुम्हें बुखार ही इतना तेज है कि मीठा रस मीठा नहीं लगता। ___ हमने जीवन में सिर्फ क्रोध ही किया।इसलिए ऐसा लगता है कि क्रोध करने से ही किसी पर नियंत्रण किया जा सकता है। अभी तक प्रेम का रस ही न पीया, प्रेम का स्वाद ही न चखा इसलिए नहीं जानते कि प्रेम के द्वारा किसी के दिल को कैसे जीता जाता है। क्रोध करके तो आप अपने बेटे को भी अपने से जीवन भर जोड़ कर नहीं रख सकते। लेकिन प्रेम की भाषा से आप सारी दुनिया को अपना बना सकते हैं। प्रेम, अहिंसा, करुणा की भाषा आनी ही चाहिए।आपके पास से प्रेम का दरिया बहना ही चाहिए। प्रेम की बाती जलनी ही चाहिए। अहिंसा की कंदील जलनी चाहिए, करुणा की प्याली छलकनी चाहिए। व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ने के लिए यह ज़रूरी है। और हम क्रोध करके ही सोचते हैं कि कुछ पाया, कुछ जीया अब हल्का हुआ।हमने केवल वासना और कामना की ही भाषा जानी है, यह न जाना कि निष्काम की भी कोई भाषा होती है। ब्रह्मचर्य की भी चेतना होती है।
मनुष्य की स्थिति बहत दयनीय है। एक उत्तेजना जागती है और हम उसकी आपूर्ति कर लेते हैं। इस दयनीय स्थिति से उबरने के लिए ही भृगुपुत्रों का संदेश आपके लिए सार्थक हो सकता है। वे महात्याग के पथ पर चलने के लिए कृतसंकल्प हए हैं, लेकिन सम्राट सोच रहा है उसने छोड़ा है मैं जाकर ले आऊँ। कोई दान दे रहा है तो मैं ले लूँ। इस दुनिया में दानदाता तो बहुत मिल जाते हैं, पर सही दान ग्रहण करने वाला सत्पात्र नहीं मिलता। जो होता है वह भिखारी जैसा होता है। सच पूछो तो यह कहना भी भिखारी का अपमान है। भिखारी में भी कुछ आत्म-सम्मान होता है। हम तो वह भी गिरवी रख चुके हैं। होना तो यह चाहिए कि दाता मिले सैकड़ों, पर लेने वाला कोई न हो।नौका में पहले ही बहुत पानी भरा है। और अधिक भरना डूबने की तैयारी है। इसलिए पानी भरो मत, जो भरा है उसे उलीच कर बाहर निकालो, उछालो, लुटा डालो।
केवल मंदिर जाना ही मंदिर की यात्रा नहीं है, रास्ते में मिले किसी दखी के आँसू पौंछ देना भी परमात्मा की पूजा के समान है। तभी तो राजरानी ने सम्राट को लताड़ा और असार संसार असार रूप में समझ में आ गया। जब-जब भी स्त्री ने जीवन के शाश्वत मूल्यों को उपलब्ध करने के लिए पुरुष को लताड़ा, धरती पर नएनए तुलसीदास जन्मते गए, नए-नए सम्राटों के फूल खिलते गए और जीवन का शाश्वत बोध उजागर हुआ।
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