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और गाली पडी बेचारे चन्द्रप्रभ को।
लोकैषणा के टूटने से जीवन में नया संन्यास घटित होता है। व्यक्ति घर में रहते हुए संत हो जाता है। लेकिन जब वह पाता है कि मेरा नाम हुआ, मुझे पत्नी मिली, पुत्र प्राप्त हुआ, धन आया, वह प्रसन्न हो जाता है। परन्तु किसी को पता चले कि मुझे पुत्र तो मिला लेकिन बड़ा होने पर वह साधु बन जाएगा तो बहुत मुश्किलें खड़ी हो जाएँगी। पुत्र पाने की सारी खुशियाँ तिरोहित हो जाती हैं। बेटा आत्महत्या कर ले, हमें बर्दाश्त हो जाएगा, विवाह होते ही माता-पिता को छोड़कर अलग घर बसा ले, हम सहन कर लेंगे, घर में रहकर कुटेवों से घिरा उपद्रव करता रहे हम स्वीकार कर लेंगे, लेकिन जैसे ही पता चले कि वह दीक्षा लेकर मुनित्व ग्रहण करने वाला है, हमें असह्य पीड़ा होती है। बेटा तो यूँ भी कोई सेवा करने वाला नहीं है लेकिन संन्यास तब भी न लेने देंगे। जैसे संन्यास कोई हौवा है या शैतान है जो जीवन समाप्त कर देगा। हाँ, संसारियों के लिए तो हौवा ही है। कोई संत सामने आये तो उसके चरणों में तो हम झट से झुकने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन खुद को संत होना हो तो दस कदम पीछे खिसक जाएँगे।
किसी दूसरे का बेटा संन्यासी हो रहा है तो हम दस लाख का चढ़ावा बोल देंगे, लेकिन अपना बेटा कहे पिताश्री ! मैं महामार्ग का अनुसरण करना चाहता हूँ तो पिता समझाएगा बेटा तुझे क्या हो गया है, तेरा दिमाग तो ठिकाने है, कल से धर्म-स्थल पर, धर्म-सभा में जाना बंद कर दे, तुममें पागलपन आ गया है, ये सब क्या बातें सोच रहे हो। अब पिता बेटे को संसार का अर्थ और महत्त्व समझाएगा। वह समझाएगा-संसार में बहुत रस है, बहुत सुख है, हालांकि खुद ने नहीं पाया है, फिर भी बेटे को समझा रहा है। क्योंकि बेटा चला गया तो उसका नाम, उसका वंश कैसे चलेगा। उसकी पीढी, उसका संसार ही खत्म हो गया-समझा रहा है। जब तुम ही न रहे तो तुम्हारा नाम कैसे रह पाएगा। नाम मिटे या मरे, लेकिन तुम जीवित हो, जीवंत हो तो नाम के होने या न होने से क्या फ़र्क पड़ता है। ___ हमारे सारे संबंध, सारे अर्थ जीवन के हैं। सभी नाम, पद, प्रतिष्ठा जीवन की है। अब गांधी की समाधि पर कोई फूल चढ़ाए या न चढ़ाए इससे गांधी को क्या प्रयोजन होगा। तुम मंदिर में जाकर महावीर की प्रतिमा को शीश झुकाओ या वहाँ गपशप कर चले आओ, महावीर को इससे कोई प्रयोजन नहीं है। राम के चरणों में कोई अपने हृदय को समर्पित करे या बकरे की बलि चढ़ाए, राम को इससे कोई मतलब नहीं। जीवन के अर्थ, सारे मूल्य जीवन के हैं, लेकिन पिता यही समझाएगा बेटा! संसार में बहुत रस है।
किसी भी पिता ने अपने बेटे को यह नहीं समझाया होगा कि देख मैंने शादी की,
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