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________________ स्वाभाविक है कि जब किसी व्यक्ति को शुभ स्वप्न आता है, वह प्रसन्न और खुश होता है। संतान की उत्पत्ति पर अनेक प्रकार से अपनी खुशी प्रकट करता है। प्रसन्नता का कारण मन की गहराई में छिपी लोकैषणा है। एक गहन वित्तैषणा, गहरी पुत्रैषणा छिपी हुई है,स्त्रैषणा छिपी हुई है। जहाँ-जहाँ मनुष्य के भीतर एषणा छिपी रहती है, वहाँ-वहाँ स्त्री को पाने के लिए, पुत्र को पाने के लिए, धन को पाने के लिए, लोक में अपना नाम कमाने की चाह और तमन्ना बनी रहती है। मनुष्य की मूढ़ता अज्ञान नहीं, उसकी एषणा है, चाहत है, विषय के प्रति उसकी तलब है, विषय-वस्तु के प्रति मन में पलने वाली तृष्णा है। कोई व्यक्ति साहसपूर्वक पत्नी, पुत्र और धन छोड़कर संत भी हो जाए, लेकिन फिर भी वह लोकैषणा में उलझ जाता है। __मनुष्य घर में रहता है तो धन को पाने की एषणा पालता है, संसार में रहता है, तो हर वक़्त स्त्री को पाने को आतुर रहता है, गृहस्थ में होने पर पुत्र व संतान के लिए उत्सुक रहता है, और संन्यास ले चुका है तो अपना नाम कमाने की चेष्टा! विभिन्न आयोजन करता रहता है। अगर उसे सही आत्म-बोध हुआ है, सही मार्ग पर आरूढ़ होने की जिज्ञासा जगी है, तो उसने जान लिया कि जब संसार ही झूठा है तो नाम कौन-सा सच्चा और स्थायी है। जब संसार ही त्याज्य है तो नाम और उसकी कीर्ति कहाँ शाश्वत और सनातन है। मनुष्य की प्रकृति है कि वह संसार तो छोड़ने को तैयार हो जाएगा, लेकिन नाम न छोड़ पाएगा। जब वह जान लेता है कि नाम पूरी तरह आरोपित, प्रक्षेपित और मिथ्या है, तब एक प्रकार से संसार से जुड़े संबंध आधे हो जाते हैं। नाम को व्यक्ति समाज के बीच जीता है और संसार को परिवार के मध्य जीवित रखता है। जब वह नाम के, पद के मिथ्यात्व को जान लेता है या प्रतिष्ठा को मन का बहकावा समझ लेता है तब उसका समाज के साथ, संसार के साथ संबंध शिथिल हो जाता है और वह एकाकीपन की संवेदना, एकाकीपन के अनुभव और मौन में डूबने लगता है। नाम के प्रति आसक्ति होने पर अपने प्रति दी जाने वाली गालियों से क्रोध पैदा होगा,खीज आएगी, लेकिन नाम के प्रति वीतराग होने पर कोई भी गाली लगती नहीं है। कोई कहे कि चन्द्रप्रभ अच्छा आदमी नहीं है; वह गाली भी दे रहा है। अब चन्द्रप्रभ स्वयं को क्रोधित भी कर सकता है और हँस-खिल भी सकता है। अगर वह यह माने कि जो चन्द्रप्रभ है वह मैं हूँ, तो गालियाँ सुनकर क्रोधित होगा लेकिन जब वह जाने कि चन्द्रप्रभ केवल एक नाम है, एक संज्ञा है, तब गाली कोई देगा और वह हँसेगा। कहेगा आज चन्द्रप्रभ के साथ बहुत बुरा हुआ, मेरे साथ कुछ न हुआ लेकिन चन्द्रप्रभ के साथ अच्छा न हुआ कि उसे इतनी गालियाँ सुननी पड़ी। गलत मैंने किया 191 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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