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संन्यास की बात सुनते ही माता-पिता दंग रह गए। राजपुरोहित भृगु बोलेजानते हो तुम क्या कर रहे हो? बहुतेरा समझाया गया, महामार्ग के पथ पर जाने के लिए नानाविध रोका गया। पिता ने कहा- अगर तुम संन्यासी हो गए तो तुम्हें जन्म देने का औचित्य ही क्या रहा? हमने तुम्हें जन्म ही क्यों दिया? तुम संन्यासी हो गए तो हमारा पिण्डदान कौन करेगा, पितृ-तर्पण कौन करेगा, तुम लोगों के बिना हमारी आत्माओं की सद्गति नहीं होगी। तुम्हारे बिना हमारा वंश कैसे चलेगा। लेकिन पुत्रों की आत्म-ज्ञान से भरी बातों के सामने माता-पिता के तर्क पराजित हो गए। वे अपने मार्ग पर बढ़ने के लिए अडिग थे।
राजपुरोहित और उनकी पत्नी ने पाया कि जब हमारे दोनों बाल सुकुमार अगर जीवन के महाकल्याण के लिए आगे बढ़ना चाहते हैं तो वे घर में रहकर क्या करेंगे। माता-पिता दोनों ने अपने पुत्रों का अनुसरण किया। अपना वैभव-सम्पत्ति सभी यथावत छोड़कर महामार्ग के लिए निकल गए। यह ख़बर सम्राट के पास पहँची तो 'जिसका कोई मालिक नहीं, राजा ही उसका मालिक' इस उक्ति के अनुसार भृगु की सारी ज़मीन-जायदाद, पूरी सम्पत्ति राजकोष में डालने के लिए ज़ब्त कर ली गई। लेकिन जब महारानी ने यह सुना तो महाराज को प्रताड़ित करते हुए कहा कि राजपुरोहित ने तो धन और वैभव की असारता को समझकर, उसके दोनों पुत्रों ने जीवन के सत्य को समझकर, महामार्ग का अनुसरण किया और आपने उन्हीं के परित्यक्त धन, ज़मीन-जायदाद को अपने राजभंडार में डाला। किसी ने उसे असार समझा और आपने उसी असार तत्त्व को ग्रहण किया, आपकी आत्मा को धिक्कार है। धिक्कार है आपकी दृष्टि को, धिक्कार है आपकी मानसिकता को। ___ महारानी से इस प्रकार की प्रताड़ना की उम्मीद न थी।कोई पति अपनी पत्नी से यह आशा नहीं करता कि वह उसे झिड़केगी। लेकिन महारानी तो स्वयं ही व्याकुल हो गई थी कि धन्य हैं वे बाल-पुत्र जिन्होंने महामार्ग का अनुसरण किया और मातापिता भी उसी पथ के पथिक हो गए और एक हम हैं जो दिन-रात राज-वैभव में डूबे हुए, संसार में आसक्त रहकर निरन्तर कीचड़ में अधिकाधिक धंसते जा रहे हैं। ___ महारानी ने राजा को बताया कि वह भी उन्हीं दोनों भृगुपुत्रों का अनुसरण करेंगी। प्रताड़ना का यह असर हुआ कि असार को असार समझा, सार का बोध हुआ
और स्वयं सम्राट भी महारानी के साथ हो लिए। इस तरह एक राज्य से एक समूह जाग्रत हुआ। वह व्यक्ति, वह समाज, वह संघ निर्मित हुआ जिसकी चर्चा उत्तराध्ययन सूत्र में की गई है।
उन दोनों भृगुपुत्रों ने अपने पिता को जो संदेश दिए, जो सूत्र कहे, उनमें प्रवेश करने से पूर्व हम कहानी के कुछ बिन्दुओं को लें।
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