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सजगता ही विरक्ति की सही परिभाषा बन सकती है। प्रेरणा दे-देकर, उकसा-उकसा कर, चने के झाड़ पर चढ़ा-चढ़ाकर कब तक हम लोगों से उनके पाप छुड़ाते रहेंगे। छोड़ने से छुटकारा नहीं होता। छूटे तो ही छुटकारा सम्भव है। छुटे तो ही मुक्ति का मनोविज्ञान समझ में आये। छूटे तो ही मुक्ति का अनन्त आकाश आत्मसात् होगा। छोड़-छोड़कर तो छूट नहीं पाएगा। गुरुत्वाकर्षण बाँधे रखता है, बार-बार खींचता रहता है। वस्तु, व्यक्ति या और किसी को छोड़ भी दिया तो क्या, गुरुत्वाकर्षण तो बराबर खींचे रहेगा। गुरुत्वाकर्षण, मूर्छा, पकड़ ढीली हो, तो ही कोई बात बने । जन्म-जन्म की बिगड़ी सुधरे।
पथ भूल न जाना पथिक कहीं! पथ में काँटे तो होंगे ही, दूर्वादल, सरिता, सर, होंगे। सुन्दर गिरि, वन वापी होंगी, सुन्दर-सुन्दर निर्झर होंगे। सुन्दरता की मृग-तृष्णा में, पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
जब कठिन कर्म-पगडंडी पर राही का मन उन्मुख होगा। जब सपने सब मिट जाएँगे कर्तव्य- मार्ग सम्मुख होगा, तब अपनी प्रथम विफलता में, पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
अपने भी, विमुख, पराये, बन, आँखों के सम्मुख आएँगे। पग-पग पर घोर निराशा के, काले बादल छा जाएँगे। तब अपने एकाकीपन में, पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
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