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कर्तव्य-प्रेम की उलझन में, पथ भूल न जाना पथिक कहीं! पल भर भी पड़ असमंजस में,
पथ भूल न जाना पथिक कहीं! अगर कदम बढ़ा लिए, मुक्ति के मार्ग पर आरूढ़ हो ही गए, तो पथ की बाधाओं की क्या परवाह! मृत्यु से बढ़कर तो कुछ हो ही नहीं सकता। आखिर, एक-न-एक दिन तो काया गिरनी ही है, सौभाग्य! अगर मक्ति के लिए. आत्मस्वतन्त्रता के लिए काया गिरी तो भी सौभाग्य! मातृभूमि पर लाखों लोगों ने बलिदानी दी है। अपने भीतर के महाभारत के चक्रव्यूह से मुक्त होने के लिए अगर तुम्हें अभिमन्यु होना पड़े, तो माँ भारती की महान कृपा!
आप सब यों काफी समझदार और प्रबुद्ध हैं। अपने ज्ञान का उपयोग तर्कवितर्क या विचार-विमर्श में मत करो। ज्ञान जीने के लिए है। ज्ञान वाद-विवाद के लिए नहीं, जीने के लिए है। ज्ञान और ज्ञान में फ़र्क है एक ज्ञान वह, जो औरों को पछाड़े। एक ज्ञान वह, जो खुद के साथ औरों को भी उठाए। तुम आगे बढ़ो, जमाना तुम्हारे साथ होगा। न भी हो, तो भी, एकला चलो रे! ज्ञान को मौन जी लेना, ज्ञान से स्वयं को सार्थक कर लेना है।
मनुष्य की यह कैसी विडम्बना है कि हम अपने आपको इतना बड़ा ज्ञानी कहते हैं, पर हमारे भीतर कितनी अविद्या छिपी पड़ी है ! मेरे संबोधन तो महज एक सत्यबोध हैं, दिशा-बोध हैं। ज्ञान द्वारा, सजग दृष्टि द्वारा भीतर के अज्ञान को पहचानने के लिए है। जिस दिन आदमी को लगेगा कि मैं किस अज्ञान से भटकता रहा, तब उसके जीवन में ज्ञान की रोशनी प्रकट होगी। तब एक ज्योतिकलश छलकेगा। मेरे देखे, अज्ञान का बोध ही ज्ञान के जन्म का आधार बनता है।
व्यक्ति के पास ज्ञान के नाम पर ज्ञान नहीं, पांडित्य भर होता है। ज्ञान के रूप में प्रज्ञा और बोध होना चाहिए, पांडित्य का पाषाणी भार नहीं। भले ही कोई गधा अपनी पीठ पर चंदन को लादे हुए घूमता रहे, पर वह चंदन उसके किसी काम का नहीं। उसके लिए तो चन्दन और मिट्टी एक समान है। चाहे उसकी पीठ पर चंदन लादा जाये या मिट्टी कोई अन्तर नहीं।गधे के लिए तो दोनों भार हैं । गधा तो यही चाहता है कि यह भार जितना जल्दी उतरे, उतना ही अच्छा।
आज दोपहर में एक सज्जन मुझसे दो-चार शब्दों के अर्थ को लेकर चर्चा कर रहे थे। मैं उनकी चेतना को समझ रहा था, इसीलिए मैंने उनसे कहा कि आप इन शब्दों की मारामारी को छोड़िए। शब्दों को हम बहुत समझ चुके और समझ
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