SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रहा है, धर्म को प्रलोभन से मुक्त करना है। त्याग-वैराग्य-वीतरागता को बढ़ाना है। प्रलोभन से तो छुटकारा पाना ही है, इसी के साथ गुणग्राहकता को बढ़ाना है। किसी सम्प्रदाय, विशेष से मत बँधो। सब जगह जाओ, गुणग्राही बनो, अपनी दृष्टि को गुणात्मक बनाओ। ज्ञान किसी की बपौती नहीं है। ज्ञान सिर्फ ज्ञान होता है। ग्राहकता का भाव रखो। जब विद्यालय में शिक्षक को गुरु बना लेते हैं, तो जीवन में तो अनेकों सुशिक्षा देने वाले मिलेंगे, सबसे ग्रहण करो। जो श्रेष्ठ हो उसे जीवन में उतारने का प्रयास करो।सार-सार को गहि रहे,थोथा देय उड़ाय। ____ 'सूरज को बाँध ले चली आंचल में छाया'- फ़र्क सिर्फ प्रकाश और अंधकार का है। सूरज के प्रकाश को, धर्म को ये अन्धविश्वास की परछाइयाँ अपने आँचल में बाँधकर न जाने कहाँ भटका रही हैं। सूरज को बाँध ले चली अपने आँचल में छाया। क्यों नियत काल के आगे पुरुषार्थ पराजित लगता? अँधियारा दीप तले का क्यों दीपक को ही छलता? तप अग्निपरीक्षा में ही सोना कुन्दन होता है। मुस्कानों को पाने से पहले रोना होता है। जो विष पी उसे पचाता वह शिवशंकर होता है; अन्यथा अमी पीकर भी देवों का कुल रोता है। जैसे अमृत पीकर भी देवों के कुल ने क्रंदन किया था, वैसे ही धर्मस्थानों में जाकर भी खाली लौट आएँगे। जीवन में अगर संन्यास न ले पाओ, संसार न छोड़ पाओ तो चिन्ता न करना; बस इन सम्प्रदायों, पंथों के दुराग्रह और राग को छोड़ देना; इन्हीं से संन्यास ले लेना। यह पहला संन्यास होगा कि तुम गण-गच्छ, मजहब के दुराग्रहों को त्यागो और सत्य के लिए जीवन समर्पित करो।सत्य को जीएँगे, सत्य के लिए मरेंगे, सत्य को उपलब्ध होकर जीवन से गुजरेंगे। •आत्मानुभव का सरल, सुगम रास्ता कौन-सा है? कोई तप, कोई योग, तो कोई ध्यान की बात करते हैं । कृपया अपने अनुभव से हमें कृतार्थ करें। आत्मानुभव का सबसे सरल, सुगम और प्रशस्त मार्ग ध्यान है। ध्यान धर्म की कुंजी है, धर्म का अर्थ है, धर्म की वास्तविकता और धर्म का अभिप्राय है। ध्यान के अभाव में धर्मशास्त्र बिल्कुल पाकशास्त्र की तरह है। पाकशास्त्र की पुस्तक उठाओ, पृष्ठ पलटो, मिठाइयों की तस्वीर मिल जाएगी, मिठाइयों का स्वाद नहीं मिलेगा। चाहे योग हो या तप, पूजा हो या प्रार्थना – धर्म का कौन-सा मार्ग ऐसा है जिससे ...163. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy