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________________ घर वापस चले जाओ। क्या इतने से तुम धार्मिक हो गए? तुम्हारे भीतर के उन पापों का न्याय कौन करेगा जो हम मंदिर के बाहर दिन-रात करते हैं। मंदिर में आते हो दस मिनट के लिए और संसार में रहते हो तेईस घंटे पचास मिनट। पलड़ा कहाँ बराबर हो पाता है? इसीलिए कहता हूँ सारे संसार को मंदिर मानो। जितने शुद्ध मन से, पवित्रता के साथ मंदिर आते हैं उतनी ही पवित्रता से अपने कदम संसार की ओर बढ़ाओ। जितना पवित्र मंदिर रखना चाहते हो, अपने घर को भी उतना ही स्वच्छ-पवित्र रखो अन्यथा घर से बाहर ही मंदिर की कल्पना साकार होती रहेगी। और फिर मंदिर कौन बनाता है? तुम्हीं न्, फिर घर को ही क्यों न मंदिर बना लें? __धर्म को जीवन के साथ जोड़ें। जीवन को धर्म से अलग करते ही हमारे नैतिक मूल्यों का भी पतन हो जाता है।ईमानदारी की बातें करते हुए, बेईमान मत बनो। एक समय था जब ईमानदारी से मनुष्य धन कमाता था इसलिए यह नीति थी कि धन कमाना है तो ईमानदारी रखो। आज तुम सोचते हो, ईमानदारी रखी तो भूखे मरेंगे। अभी एक रिटायर्ड एस.पी. कह रहे थे मैंने जीवन में कभी रिश्वत नहीं ली लेकिन मेरे बेटे मेरी उपेक्षा करते हैं और कहते है एस.पी. होकर तुमने क्या पाया, क्या कमाया। मैं कहता हूँ मैंने ईमान कमाया, मैं रात में चैन से सोता हूँ। मुझे दो वक़्त आराम से भोजन मिलता है, लेकिन मेरे बेटे, मेरा परिवार इस बात को समझ नहीं पाते। आज व्यक्ति बेईमानी करता है तो पैसा मिलता है, इसलिए आज की नीति ईमानदारी नहीं बेईमानी बन गई है। ___ दुनिया में आज पैसा ही मूल्यवान हो गया है। जिस देश में महावीर और बुद्ध ने अपरिग्रह का सिद्धान्त दिया, मुक्ति का मार्ग दिखाया, भौतिकवाद से ऊपर उठने के सूत्र दिए, उस देश के लोग आज सबसे अधिक पैसे के लिए लालायित हैं। यहाँ व्यक्ति के गुणों की कीमत ख़त्म हो रही है, सिर्फ चमड़ी और दमड़ी की कीमत हो गई है। धन तो सिर्फ साधन है, लेकिन हमारी बुद्धि इतनी परिग्रहशील हो चुकी है कि हमें सिर्फ पैसा चाहिए। इस चाह में जैसे सभी भिखारी हो गए हैं, कोई छोटा तो कोई बड़ा । संसार को दान का संदेश देने वाला खुद औरों के अनुदान पर निर्भर रह रहा है। हमारी मानसिकता भिखारी की बन गई है। मनुष्य का मन अत्यन्त विकृत हो गया है। बाहर से साफ-सुथरा लेकिन भीतर वहशीपन से भरा हुआ, पतन के गर्त में जाता हुआ। मेरे देखे व्यक्ति सिद्धांतों को जीए, चित्त को शुद्ध बनाए, आत्मा की निर्मलता की ओर ध्यान दे। हम यह समझ लें कि दसरा कोई देखे या न देखे मैं तो स्वयं को देखने वाला हूँ। वह परम पिता परमात्मा तो सभी को देख रहा है।जहर चाहे छिपकर पीओ या सबके सामने,जहर तो अपना असर दिखाएगा ही। मैं तो कहता हूँ पुण्य करो या दान, छिपकर करो और पाप को 61 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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