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________________ से अलग, तटस्थ हूँ। दूसरा - सजगता, हर कार्य के प्रति सजगता। जो कुछ भी कर रहे हो जागरूकतापूर्वक करो। खाना भी खाओ तो सजगता से। चलना भी सजगता से, सोना भी जागरूकतापूर्ण । हम साँस भी लें तो सजगता के साथ, बाहर भी छोड़ें तो ज्ञात रहना चाहिए कि साँस बाहर गई। जो व्यक्ति अपनी साँस के प्रति सजग हो सकता है वही, केवल वही अपने चित्त को शांत निर्विकल्प रख सकता है। रखना नहीं पड़ता, शांत हो ही जाता है। करना नहीं, होना' होता है। वह प्रज्ञा और समाधि में ही विचरता है। ___ जीवन में क्रांति हो जाएगी अगर आप क्रोध भी सजगतापूर्वक कर सकें। आप पाएँगे कि क्रोध हो ही नहीं पा रहा। सच्चाई तो यही है कि क्रोध के समय होश नहीं रहता, अगर होश है तो क्रोध नहीं और क्रोध है तो होश नहीं। क्रोध का बोध होते ही क्रोध तिरोहित हो जाता है। अन्दर का होश जाग्रत होते ही कर्म का मालिन्य भी हमें छू नहीं पाता और हम स्वयं का अन्तर-अभिषेक करने लग जाते हैं। सजगता का सातत्य बना रहे फिर कोई दूषण प्रदूषित नहीं करता। साक्षीत्व स्वयं को निर्मल और पवित्र बनाने का उपक्रम है। व्यक्ति के भीतर ही आनन्द है।शान्ति-तीर्थ हमारे भीतर है, अन्तर-घट में है। यदि शांति-तीर्थ को उपलब्ध करना है, तो अपने भीतर प्रवेश करो क्योंकि वह हमारी अन्तरात्मा में ही है । जहाँ साक्षी है, वहाँ तथाता का भाव है। भगवान बुद्ध को तथागत कहा गया है। तथाता का अर्थ है हमारी ओर से कोई क्रिया-प्रतिक्रिया नहीं। जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करने का नाम ही तथाता है। भगवान के पास अस्वीकार नहीं है, इसीलिए वे तथागत हैं। यह सर्वोत्कर्ष स्थिति है, कैवल्य की स्थिति है। व्यक्ति भीतर प्रविष्ट हो; वहाँ शान्ति-तीर्थ है। जितने भी महापुरुष हैं, सब आदरणीय हैं लेकिन हम उनकी चिन्ता छोड़ें, हम स्वयं वही होने का प्रयास करें। दूसरा महावीर या बुद्ध नहीं हो सकता। हम जो हैं उसी में पूर्णता पाने का प्रयास करें। महावीर दूसरा नहीं होगा, तुम्हें अपना महावीर स्वयं होना होगा। सुबह शाम आधा घंटा ध्यान में उतरो। डूबो। स्वयं को शान्ति-तीर्थ में ही पाओगे। जहाँ तुम हो, वहीं सारे तीर्थ हैं । बाहर यात्राओं पर नहीं जाना होगा, भीतर की यात्रा में सारे तीर्थ आ जाएँगे। जीवन की यात्रा में सम्पूर्ण तीर्थ-यात्रा समाविष्ट है। अन्तरहृदय में है वह शांति-तीर्थ । लम्बी साँसों के साथ सोऽहं का स्मरण करो। दसपन्द्रह मिनट तक लम्बी साँस चलने दो और फिर उतर जाओ अन्तर-हृदय में, अन्तरघट में। हृदय-क्षेत्र में गहराई बनाते चले जाओ। आप सहज शान्ति-तीर्थ को उपलब्ध हो जाएँगे।अपने आपको उपलब्ध हो जाएँगे। \51 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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