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समझें, धर्म का रहस्य
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धर्म में बढ़ते हुए सम्प्रदायवाद, कट्टरता, रूढ़िवाद, आडम्बर और प्रदर्शन पर अनावश्यक खर्च इत्यादि से समाज में भयानक गिरावट आ रही है। यह समाज के पतन का संकेत है। इस परिस्थिति से उबरने के लिए समाज में कैसे परिवर्तन लाया जाए ?
समाज एक ऐसी दिशा की ओर बढ़ रहा है जिसका न कोई स्पष्ट लक्ष्य है और न मंजिल । गतानुगतिक की तरह एक जिधर जा रहा है बिना सोचे समझे शेष लोग भी उधर ही बढ़ रहे हैं । आज का विश्व बौद्धिक है, ज्ञानमूलक है फिर भी किसी के पास यह सोचने का समय ही नहीं है कि उसके जीवन का, जीवन-मार्ग का, समाज का, सामाजिक मूल्यों का क्या लक्ष्य है, क्या परिणाम है ।
कुछ बुद्धिजीवी समाज की इस दशा पर चिन्तन-मनन कर लेते हैं, दुर्दशा पर आँसू बहा लेते हैं लेकिन इससे सक्रियता नहीं आती, रूपान्तरण नहीं होता । जब तक भेड़ों के टोले में रहेंगे, अपने सोए हुए सिंहत्व को नहीं जगाएँगे, समाज की ऐसी ही स्थिति रहेगी। न केवल समाज की अपितु उन सभी की यही स्थिति होगी जिनके अंदर अध्यात्म का सिंहत्व सोया है । महापुरुषों ने करुणावश हमें धर्म का रस दिया, मानवजाति को उपकृत किया कि धर्म का सही स्वरूप जान सकें, लेकिन महापुरुषों ने जिस पात्र में धर्म-रस उँडेला उसे तो कोई मतवाला पी गया, कोई दीवाना पीकर मतवाला हो गया, हमारे पास तो केवल रीते पात्र ही शेष रह गये । पात्रों में अमृत भरा
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