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________________ यह शरीर सलौना पुतला होगा, मेरे लिए तो बाँस की पोंगरी है, बाँसुरी है। आप बाँस को लाठी के रूप में मरणोपरान्त सीढ़ी बनाने के लिए काम लेते होंगे लेकिन, जिसने जाना है, जिनके भीतर संगीत पैदा हुआ है, आनन्द का निर्झर प्रवाहित होता है, वह जानता है कि यह केवल लकड़ी नहीं है। इस पोंगरी में मधुर संगीत छिपा हुआ है, बस बजाने की कला आनी चाहिए। जब बाँस संगीत दे सकता है तब क्या आप अपने जीवन में आंतरिक संगीत पैदा नहीं कर सकते? स्वयं जीवन को पंच-कल्याणक महोत्सव नहीं बना सकते? ___ सदा प्रसन्नचित्त रहना जीवन के कायाकल्प का पहला चरण है। प्रसन्न रहेंचाहे परिस्थितियाँ अनुकूल न भी हों, तो भी प्रसन्न रहने का प्रयास करें। इससे सहनशीलता बढ़ती है और आसपास का वातावरण, मिलने वाले लोग सहज ही प्रसन्न होते हैं और उनकी यह प्रसन्नता पुनः आप में प्रतिध्वनित होती है। इस तरह प्रसन्नता का वर्तुल निर्मित हो जाता है जो हमें जीवन के प्रति अधिक उत्साहपूर्ण, ऊर्जस्वित एवं जागरूक बनाता है। प्रसन्नचित्त रहने का कोई अवसर न छोड़ें। हर मिलने वाले का भरपूर मुस्कुराहट से स्वागत करें। जीवन में आसपास ऐसा क़ाफ़ी कुछ बिखरा पड़ा है, जिस पर हँसा-मुस्कराया जा सकता है। अच्छा होगा, कभी अपने आप पर भी हँसें। हँसना भी एक माध्यम बन सकता है बुद्धत्व का, विकारों के रेचन का। इससे स्फूर्ति भी आती है और शद्धि भी। ऐसे विषयों पर अपने चित्त को एकाग्र होने से बचाएँ, जिनसे तनाव बढ़ता हो। विषय परिवर्तन कर अपना ध्यान किसी रुचिकर विषय पर लगाएँ या किसी पसंदीदा काम में स्वयं को पूर्ण सजगता से, होशपूर्वक व्यस्त कर लें। त्रासदायक विचार स्वतः विलीन हो जाएँगे और अगर कभी कोई तनाव, क्रोध, वासना, उद्विग्नता उभरे, तत्क्षण स्वयं को मंद-गहरे श्वास-प्रश्वास पर केन्द्रित करें। श्वान के रेचन पर विशेष जोर दें। इससे तीन-चार मिनटों में ही मन शांत होने लगेगा। अपने जीवन को महत्व दो तो प्रसन्नता के फूल खिलते हैं, आनन्द का आह्लाद होता है। स्वयं को कर्ताभाव से अलग कर साक्षीभाव में ले आओ। साक्षीभाव की गहनता से कर्ताभाव टूटता जाएगा।ज्यों-ज्यों कर्ताभाव टूटेगा, कर्म के प्रति सजगता बढ़ती जाएगी। कर्ता के प्रति साक्षी होना और कर्म, विकल्प, विषय के प्रति सजग होना तथाता होने का प्रथम चरण है। तीन बातें स्मरण में रखें, प्रथम-कर्ता से स्वयं को अलग रखें। अंदर का साक्षी इतना गहरा हो कि कर्ताभाव स्वयं से छूट जाए। तब जीवन में पहली बार अपूर्वकरण गुणस्थान घटित होता है, जब व्यक्ति के भीतर से कर्ताभाव टूट जाए। जो होना है वह हो रहा है चाहे अच्छा या बुरा । मैं तो न अच्छा कर रहा हूँ, न बुरा । मैं इन दोनों के द्वन्द्व 56/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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