SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुरभित नहीं बनाएगी, आपको भी सुगंधित करेगी। जो हर समय, हर हाल में प्रसन्न है वह मानो परमात्मा की ही भक्ति कर रहा है । प्रतिकूल और अनुकूल दोनों ही स्थितियों में खुश रहना चाहिए। मेरा एक ही संदेश है : सदा प्रसन्न रहिए- उत्सवपूर्ण और ऊर्जावान । जो स्वयं में रहता है, वह आठों याम, चौबीसों घंटे वर्ष भर, जीवन भर आनन्दित और प्रमुदित रहता है। हमें तो स्वयं में रहना है। किसी ने गाली दी उसकी मौज, प्रशंसा की उसकी मौज। हमें तो निर्विकार भाव से उन सबको ऊपर से गुजर जाने देना है। हमारी आन्तरिक प्रसन्नता ही हर समय प्रकट हो। अभिनेता तो नाट्यमंच पर पाँवों में घुंघरुओं के समान हर समय अहोनृत्य करता दिखाई देगा । हमें हर समय झूमना है, अहोनृत्य करना है । जीवन उत्सव हो जाना चाहिये । फूल खिलता है क्योंकि खिलना उसका स्वभाव है। भौंरे उसकी ओर आकर्षित हों इसलिए नहीं खिलता । खिलना ही उसके जीवन का सृजन, जीवन का सौन्दर्य, जीवन का प्रसाद और जीवन का उपसंहार है। भौंरे आते हैं यह न फूल का गुण है, न अवगुण । सौरभ बिखरेगी तो भौरें आएँगे और न भी आएँ, तो फूलों को कोई शिकायत नहीं रहती। उसके लिए खिलना ही आनन्द है । जिसके लिए स्वयं की प्रसन्नता ही आनन्द है, उसके लिए कोई हो न हो, अंतर- मीरा तो नाचती ही है । उसकी पायल झंकृत होती ही है, बिना बजाए ही वीणा गुंजार करती है । नहीं है कोई बादल, फिर भी कहीं से फुहारें गिर रही हैं 'बिन घन परत फुहार'। नहीं है बादलों की गर्जना फिर भी बिजली का प्रकाश चमक रहा है । दिया जिन्होंने स्नेह, सभी का मुझ पर कर्जा, प्राणों को दी व्यथा जिन्होंने वह सब उनका । कोमल हाथों में सौंपी जिसने ज्वाला की थाती, मेरा क्या है मैं तो केवल लघु दीपक की बाती । मैं तो दीपक की छोटी-सी बाती हूँ। मेरा क्या है? जो कुछ है वह सब तेरा है, तेरा ही अवदान है। जो कुछ है वह अस्तित्व की ही अमृत वृष्टि है । यहाँ तो एक सहज दीया जल रहा है, उससे और कुछ दीपक जगमगा उठें तो सौभाग्य, न भी जल पाएँ तो कोई गम नहीं। महावीर के पास, गौतम के पास हजारों लोग पहुँचे, न भी पहुँचते तो कोई गिला न करते । पहुँच गए तो ज्योति का प्रकाश और फैल गया। या तो जल ही रहा है । जीवन तो परमात्मा को समर्पित है । यह उसका काम है कि वह हमसे क्या करवाना चाहता है। भलाई, परोपकार हो तो ठीक, वरना हम तो अपनी मौज में हैं । अंतरहृदय में वीणा की झंकार है, मीरा के घुँघरू हैं। आपके लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only 155 www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy