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________________ होता तो क्या वह इस दशा में पड़ा होता । वह तो सोचता था कि राजा से याचना करके आज उसकी दरिद्रता मिट जाएगी, पर यहाँ तो एक भिखारी और खड़ा हो गया । दिखाई तो सम्राट देता है लेकिन खुद ही माँग रहा है। अब जब सम्राट ही माँग रहा है तो भय के कारण इच्छा न हो, तो भी देना ही पड़ेगा । उसने थैली में हाथ डाला और बहुत कंजूसी के साथ चावल की एक चिपटी काँपते हुए हाथों से निकालकर सम्राट को दे दी । सम्राट उसे धन्यवाद देता हुआ चला गया। भिखारी बहुत क्रोध में था । कहने लगा- कैसा भिखारियों का नगर है, जहाँ का राजा भी भिखमंगा। और इसी कषाय-भाव से घर पहुँचकर उसने अपनी पत्नी को सारी आप बीती सुनाई। पत्नी ने कहा- अब क्यों इतना गुस्सा होते हो । एक चिपटी चावल चला भी गया तो क्या फ़र्क पड़ने वाला है। लाओ जो चावल हैं उन्हें चुनबीनकर ही बना लेती हूँ। ऐसा कहकर जैसे ही उसने थैली को पलटा, ताज्जुब से देखा- उन चावलों में कुछ दाने सोने की तरह चमक रहे थे । वह दौड़कर पति के पास पहुँची और बोली जाओ, तुरंत जाओ और सम्राट से कहो कि वह सभी चावल ले ले। 1 भिखारी ने कहा- अफ़सोस, अब कुछ नहीं हो सकता। जब अवसर आया मैं चूक गया । भाव सिर्फ़ लेने के रहे, देने के भाव आ जाते, तो सारे-के-सारे चावल सोने के हो जाते । अवसर चूक गए, तो बाद में सिर्फ़ चावल ही रह जाते हैं। हमारा जीवन भी हमारे लिए अवसर है। इसका अधिकतम उपयोग कर लें । कब कौन-सा क्षण जीवन को सुवर्णमय बना दे, रूपान्तरित कर दे, कौन जाने । यह तो प्रवाहमान जल है, चुल्लू भर पीयो कि लोटा भर इकट्ठा करो, आपका है। न भी पीया तो कोई नुकसान नहीं है । यह तो बहती गंगा है, आगे ही बढ़ती जाएगी। अवसर है, समय है, उसका उपयोग हो ही जाना चाहिए। नहीं तो जीवन का पत्ता पीला होते ही वृक्ष से कब झड़ जाए, पता नहीं है । जीवन कब समाप्त हो जाए खबर नहीं । कब चिर निद्राधीन हो जाए, कहा नहीं जा सकता, इसीलिए यह आह्वान है समय का प्रमाद मत करो। तुम जिस सागर में चल रहे हो, उसमें कब ज्वार आ जाए और तुम्हारी जीवन- नौका डुबो दे । समय आज है, आज पर विश्वास करें। वर्तमान के द्रष्टा बनो और जीवन पूरी जीवंतता, निर्मलता तथा सजगता के साथ जीओ । प्रभु की यही कामना है । 1 à 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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