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जो निर्धारित है वह होगी।समय, समय है।
___ अगर अभी अवसर चूक गए, तो असंख्यात काल तक पड़े रहना होगा। जो समय बीत गया वह कभी वापस लौटकर नहीं आता। और जब अवसर चूक गए. तो पछताने से भी क्या होता है? पछताता कौन है? जिन्हें समय की चेतना नहीं है, जिन्हें समय की सही समझ नहीं है वे ही लोग पछताते हैं । जो समय का बोध रखकर जीवन यापन करते हैं उन्हें कभी प्रायश्चित नहीं करना पड़ता। समय के एक क्षण में बादल से पानी की बूंद भूमि पर गिर कर मिट्टी में मिल जाती है, वही पानी की बँद गर्म तवे पर गिरे, तो जल जाएगी, केले के पेड़ के गर्भ में गिरे तो कपूर बन जाएगी, सर्प के मुँह में विष बन जाएगी और वही सीप में जाकर मोती। पानी की बूंद तो वही एक है, समय सभी के लिए एक समान आ रहा है, हम उसका कैसा, क्या उपयोग करते हैं, यह हमारी पात्रता पर निर्भर है।
__ यदि हम समय का पूर्ण उपयोग करने के लिए सतर्क हैं,सचेष्ट हैं तो समय की बूंद न ज़हर बनेगी और न समाप्त होगी। उसे अनिवार्यतः मोती बनना होगा। चाहे हमारे चारों ओर कांटों की बाड़ लगती रहे, हम तो उन कांटों में फूल की तरह खिलते रहेंगे, महकते रहेंगे। ___मुझे याद है: किसी एक भिखारी ने पूरे नगर में भीख माँगी। लेकिन संयोग! उसे नगर में कहीं से भी भीख न मिली। रहा होगा भिखारियों का ही शहर, फिर भीख कहाँ से मिलती। तीन दिन से भूखा वह बहुत उदास हो गया। संध्या के समय घर लौटने लगा। रास्ते में उसे एक अन्य भिखारी मिला। उसने उदासी का कारण पूछा। कारण सुनकर वह बोला- चिन्ता न करो। मेरे पास दो मुट्ठी चावल है, एक मुट्ठी तुम ले जाओ।थोड़ा तुम्हारा भी पेट भर जाएगा।
एक मुट्ठी चावल देकर वह आगे बढ़ा ही था कि सामने से बहुत बड़ा जुलूस आता दिखाई दिया। रथ,घोड़े,हाथी चल रहे थे। उसने देखा यह तो नगर के राजा की सवारी है। स्वयं महाराजा इस रास्ते से गुजर रहे हैं। मन में संकल्प किया कि राजा के चरण पकड़ लूँगा और कहूँगा कि इस भिखारी की दरिद्रता दूर कर दें। जुलूस बहुत निकट आ गया, पर भिखारी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि राजा के रथ के पास कैसे जाए। संयोग या ताज्जुब, राजा ने अपना रथ रुकवा दिया और उतर कर भिखारी की
ओर बढ़ने लगा। भिखारी के पास पहुँचकर उसके पाँवों में गिर गया और कहने लगा- भिखारी, मैं तुमसे कुछ पाना चाहता हूँ, मुझे खाली हाथ मत लौटाना। यह कहकर सम्राट ने अपना हाथ भिखारी की ओर बढ़ा दिया।
भिखारी को मन में बड़ा गुस्सा आया। उसे लगा कि अगर उसके पास कुछ
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