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________________ पतवारों को खेने का इन्तजाम करें। मैंने सुना है कि एक युवक प्रतिदिन संत के पास जाता था। एक दिन उसने कहा, 'मेरी बहुत इच्छा होती है कि मैं भी फकीरी धारण कर लूँ, संन्यस्त हो जाऊँ । ' संत बोले, 'सोचने से क्या होगा कर के दिखा दो, हो जाएगा ।' युवक ने कहा, 'आप तो कहते हैं, हो जाओ। मैंने भी अपने घर में बात की लेकिन कोई तैयार ही नहीं होता। मैंने अपने भाइयों से, पत्नी से, माता-पिता सभी से कहा कि मैं अपने जीवन को बन्धनों से मुक्त करना चाहता हूँ पर कोई अनुमति ही नहीं देता । ' अब रजा क्या माँगने से मिलती है ! निकल पड़ो, अपने आप रजा ही है। संत ने कहा, 'ठीक है, लेकिन अच्छी तरह सोच लो कि क्या वास्तव में तुम इस जीवन में आना चाहते हो । घर वालों का इन्तज़ाम हो जाएगा। वे तो अनुमति दे देंगे, लेकिन बाद में तुम बिदक गए तो ? 'मैं तैयार हूँ' । युवक ने कहा संत ने उसे श्वास रोकने की प्रक्रिया बताई । वह घर पहुँचा और प्रक्रिया के अनुसार साँस रोककर जमीन पर गिर गया। घर में कोहराम मच गया कि जवान बेटा मर गया। मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। जबरदस्त भीड़ हो गई । उस भीड़ में वह संत भी पहुँच गया। पिता रो रहा था कि हे भगवान, तुमने मेरे जवान बेटे को उठा लिया, इससे तो अच्छा होता कि मुझे ही उठा लेता। बेटा मर जाता है तो माँ भी यही कहती है । यह दूसरी बात है कि उठने की इच्छा किसी की नहीं है, कोई उठना नहीं चाहता, मगर कहते हैं । आँसू नहीं आते तब भी रोना-चिल्लाना दिखलाते हैं। जिसे देखो वह क्रंदन कर रहा था कि हे भगवान, यह तुमने क्या कर दिया । संत आगे आया। उसने कहा- यह रोना बंद करो और मेरी बात सुनो। इसकी अर्थी बाद में उठाना। यह जो तुम कह रहे हो कि इसके बदले तुम मरने को तैयार हो, तो मैं इसे जीवित करने की प्रक्रिया जानता हूँ, तुम्हारे बेटे को जिंदा किया जा सकता है बशर्ते इसके बदले तुम्हारे परिवार में से कोई मरने को तैयार हो । सब रोना-पीटना भूल गए और एक-दूसरे की बगलें झाँकने लगे। संत ने पिता से कहा- तुम तो इसके बिना नहीं रह सकते न्, तुम तो इसके लिए स्वयं मरना चाहते थे न्, अब तुम मर ही जाओ। पिता ने कहा- मेरे कोई एक ही बेटा नहीं है, चार अन्य भी हैं। मेरा काम चल जाएगा। माँ, भाई, पत्नी, सभी ने कुछ-न-कुछ बहाना बना लिया। मित्र, परिजन भी किनारा कर गए, कोई भी मरने को तैयार न हुआ । मरने वाले के पीछे कोई भी मरने को तैयार नहीं होता। घरवाले, मित्र, 42 Jain Education International For Personal & Private Use Only परिजन www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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