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________________ जीसस की कहानी के माध्यम से कहना चाहूँगा कि देने में आनन्द आता है, तो जरूर दो। लोभ अन्तहीन है, इसलिए लुटाओ। इस दुख-बहुल संसार में यह वह कर्म है, जो हमें दुर्गति से बचाता है। देने वाला व्यक्ति ही हृदय से विशाल है, वही प्रेम के योग्य है। जीवन में ऐसा व्यक्ति मिल जाए, तो उससे मैत्री करना। वह आपके भी जीवन को दुर्गति से बचाने वाला कल्याणमित्र सिद्ध होगा। ___ हमेशा हाय पैसा, हाय पैसा की पागल प्रतिस्पर्धा में शामिल न हों। उतना कमाएँ जितना आप उपभोग कर सकते हैं। समाज में प्रतिष्ठा अर्जित करने के लिए इतना धन न कमाएँ, जो व्यर्थ लॉकर में पड़ा रहे, चोर और आयकर वालों का ख़तरा बनकर हमें तनावग्रस्त करे। ऐसी प्रतिष्ठा झूठी प्रतिष्ठा है। प्रतिष्ठा ही अर्जित करनी है, तो अपने गुणों को विकसित करो। अपने कर्म से, अपने स्वभाव से प्रतिष्ठा अर्जित करो। यह प्रतिष्ठा स्थाई होती है। . पैसे की प्रतियोगिता से बचें और जो समय बचता है, वह बचा हुआ समय अपने परिवार पर, मित्रों पर, धर्म पर खर्च करें। पत्नी, माता-पिता, बच्चों के साथ खेलें, बच्चों को पढ़ाएँ, उन्हें संस्कारित करें, उनसे आत्मीय निकटता बढ़ाएँ। उनकी भावनाओं का आदर करें। इसके प्रतिफल में आपको उनसे अधिक आदर, प्यार और अपनत्व मिलेगा। जीवन को वस्तुओं से नहीं, व्यक्तित्व से आपूरित करो। न कंजूसी अच्छी और न ही तामझाम। स्वच्छ रहो, स्वस्थ रहो। सदविचार अपनाओ। औरों का सहयोग करो। यह एक जीवंत प्रभावना है। स्वयं के लिए भी और औरों के लिए भी। तनावरहित निश्चित जीवन जीओ। मुक्ति के पंख खोलो। नक्षत्रों से, तारों-सितारों से हमें मुक्ति का निमन्त्रण है। निर्लोभी मन मुक्ति की ही उड़ान है। लोभ का दलदल गहरा है, कब्ज पुराना है, हे मनुष्य! मर्त्य से ऊपर उठो, हे कमल! पंक से ऊपर उठो। यही है पहल ऊर्ध्वारोहण की, मुक्ति की। 38 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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