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________________ जलते गिरने को आ गया, तभी सेठ को ख्याल आया- अरे, मेरा छोटा बेटा। उसने लोगों से पूछा मेरा छोटा बेटा घर में सोया था, वह बाहर आया कि नहीं। लोगों ने कहा- वह तो भीतर ही रह गया। ___ माल तो सब बच गया पर मालिक ही जल गया। बताइए मालिक के जल जाने पर बचे हुए माल का क्या मूल्य? हमारे होने से सारी अर्थवत्ता है। मालकियत मूल्यवान है। क्या खोया, क्या पाया यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। मालकियत का बने रहना खोने-पाने से ऊपर है। आप दान दें,खूब प्रभावना करें,पर नामों की घोषणा न करवाएँ। देने में आनन्द आता है, दे जाओ, नाम के लिए कुछ मत करो। नाम एक तरह की प्रवंचना है। दो; अपरिग्रह-भाव से दो, इसलिए दो कि तुम्हारे पास आवश्यकता से अधिक है। आवश्यकता से अधिक नहीं है, तो देने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। __ जीसस अपने शिष्यों से बहुधा एक कहानी कहा करते थे कि एक सेठ था।सेठ ने सुना कि आज बहुत तेज वर्षा होने वाली है,खेतों की फसल आज ही न काटी गई, तो सारी फसल नष्ट हो जाएगी। उसने एक साथ पचास नौकर रखे ताकि आज ही सारी फसल कट जाए। दोपहर हो गई फसल बहुत थी। उसने दोपहर में पचास नौकर और लगा दिए फिर भी पूरी फसल न कट पाई । साँझ होने को आ गई। मालूम हुआ कि सौ लोग फसल न काट पाएँगे। दूसरे खेतों से निवृत्त हुए सभी मजदूरों को बुलाकर कटाई में लगा दिया। शाम होते-होते सारी फसल कट गई । जब मेहनताना देने का समय आया तो उसने सबको एक समान पैसा दिया। यह देखकर जो सुबह से काम करने आए थे, वे आग बबूला हो उठे। क्रोध में आकर बोले-'हम सुबह से काम कर रहे हैं और हमें दस ही रुपये और ये जो शाम को पाँच बजे काम करने आए, उन्हें भी दस रुपये, यह अन्याय है।' सेठ ने कहा, 'तुम्हारी बात तर्क-संगत है, लेकिन मुझे एक बात बताओ मैंने तुम्हें कितने रुपये मेहनताने पर रखा था?' मज़दूरों ने कहा, 'सात रुपये। और मैंने तुम्हें दिया कितना है- सेठ ने पूछा। उत्तर आया, दस रुपये।' सेठ बोला, मैंने तुम लोगों को सात रुपये की दिहाड़ी पर रखा था और दिये दस रुपये, फिर शिकायत क्यों कर रहे हो? मैं दूसरों को कितना भी दूं, इससे तुम्हें क्या मतलब? मैं दे रहा हूँ क्योंकि मेरे पास है, ज़रूरत से बहुत ज्यादा है। देने में मुझे आनन्द आता है ।देना ही मेरा स्वभाव है। देने में तृप्ति आती है । देना ही मेरा सुख है। 37 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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