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________________ करें। वह व्यवसाय अनेरा हो जाएगा, वह व्यवसाय आपको आनन्द देगा । प्रारम्भ में तो मन अवरोध लगाएगा, कई प्रश्न उठाएगा लेकिन मन की न सुनना, हृदयपूर्वक कार्य करते जाना। कुछ माह बीतने पर इतना आनन्द आएगा कि तुम उस दिन की प्रतीक्षा करने लगोगे कि कब वह दिन आए कि मैं अपने व्यवसाय को सेवा का रूप दे सकूँ। व्यवसाय भी आपके लिए सेवा और धर्म का सूत्रधार हो सकता है । लोभ तो अपूर है । इसे कभी भरा नहीं जा सकता । परिग्रह को परिग्रह से शान्त नहीं किया जा सकता । वस्तुओं पर अपनी पकड़ को ढीला करो। तुम वस्तुओं से अपने अन्तर- हृदय को भी भर नहीं सकते क्योंकि भीतर वस्तु नहीं जा सकती। मालकियत का दावा छोड़ो। तुम जिन्हें अपना गुलाम बनाते हो, एक-न-एक दिन तुम उनके वस्तुगत गुलाम बन जाते हो, क्योंकि तुम्हें उसकी आदत हो जाती है । उसके बिना तुम्हारा काम ही नहीं चलता। मनुष्य पर जब कोई वस्तु हावी हो जाती है, तभी वह लोभी बनता है । हम वस्तु के मालिक रहें, वस्तु हमारी मालिक न बन जाए। जीवन में स्वयं की मालकियत होनी चाहिए, लेकिन खुद का मालिक न बन पाने के कारण हम कभी बेटे के, कभी पत्नी के, कभी पुत्र के, कभी नौकर के या शिष्य के ही मालिक बन जाना चाहते हैं । यह भावना भी दूसरों की गुलामी है । हमें लगता है कि हम पत्नी के मालिक हैं लेकिन वास्तव में पत्नी ही हमारी मालिक बन जाती है। पहले तो कहेगीप्राणनाथ, फिर नाथ, बाद में तो पति की यह दशा होगी कि बेचारा अनाथ ही हो जाएगा। सिर्फ वस्तुओं को ही परिग्रह मत समझो। वे सारी चीजें परिग्रह हैं, जो हमारी स्वामी हो जाती हैं। पहले हमारी मालकियत थी, अब वे मालिक हो गईं। फिर इनमें चाहे वस्तु हो, व्यक्ति हो, विषय हो या अन्य कुछ और; इसमें फ़र्क नहीं पड़ता । सामान तो एकत्रित किया जा रहा है, लेकिन मालिक चूक रहा है। सामान बचाकर भी क्या होगा अगर मालिक निरंतर खोता चला जाए। मालिक से ही माल का मूल्य है । आपके होने से मकान का अर्थ है, आपके मर जाने पर वही मकान आपके लिए निरर्थक हो गया । मैंने सुना है : किसी मकान में आग लग गई। पड़ौसी दौड़े, मौहल्ले वाले दौड़े मकान की आग बुझाने के लिए। सारा मूल्यवान सामान बाहर निकाला जाने लगा । नौकर भी भाग-दौड़ में लग गए। करीब-करीब सारा सामान बाहर निकाल लिया गया। मकान मालिक को खबर दी गई कि आपके मकान में आग लग गई है, वह भी दौड़ा-दौड़ा आया । आते ही नौकर को डाँटा कि आग कैसे लग गई। लोगों ने कहाजैसे भी लगी, लग गई, अब अपने सामान को तो बचाओ, सेठ जलती हुई आग के भीतर गया और जो सामान उसके हाथ में आया, बाहर ले आया। मकान जलते 36l Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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