SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओर उठाया और अश्रु बहाते हुए ये सूत्र कहे । अधुवे असासयंमि, संसारंमि दुक्ख पउराए । किं नाम होज्जतं कम्मयं, जेणाहं दोग्गइं न गच्छेजा ।। कसिणं पिजो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स। तेणावि से न संतुस्से, इइ दुप्पूरए इमे आया ।। कपिल ने आकाश की ओर अपने हाथ उठाए और आकाश से कुछ उत्तर पाने की अपेक्षा में कुछ गाने लगा, गुनगुनाने लगा- हे प्रभु! इस अध्रुव अशाश्वत और दुख - बहुल संसार में ऐसा कौन - सा कर्म है जिससे मैं दुर्गति में न जाऊँ । यह धनधान्य से भरा हुआ सारा विश्व भी किसी एक व्यक्ति को दे दिया जाए, तब भी उसकी तृष्णा को पूरा नहीं किया जा सकता, उसके लोभ को शान्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि तृष्णा दुष्पूर है । लाभ लोभ को बढ़ाता है । दो माशा स्वर्ण की इच्छा रखने वाला कपिल ब्राह्मण करोड़ों स्वर्ण मुद्राएँ पाने की इच्छा रखकर भी तृप्त न हो पाया । कपिल ने ये गाथाएँ राजसभा में कही हैं कि इस दुख - बहुल संसार में ऐसा कौन-सा कर्म है जिससे मैं दुर्गति में न जाऊँ । पहली बात, यहाँ तो सभी अध्रुव, अशाश्वत और दुख - बहुल हैं, प्रतिक्षण हर वस्तु बदलती जा रही है। यहाँ स्थायित्व तो किसी चीज में नहीं है। दीपक जल जरूर रहा है, लेकिन हर अगले क्षण में उसकी बुझने की ओर है। यह मकान खड़ा दिखाई देता है, पर प्रतिक्षण जर्जर- खंडहर हो रहा है। खंडहर होता हुआ दिखाई नहीं देता, पर खंडहर हो रहा है । काल-कुंभ की रेत क्षण-क्षण गिर रही है। व्यक्ति सोचता है - वह अचानक बूढ़ा होगा, पर ऐसा नहीं होता। हां, ऐसा हो कि हम रात में जवान सोएँ और सुबह वृद्ध होकर जागें, तब तो देख लेंगे कि अरे, यह क्या हो गया, लेकिन जवानी, वृद्धावस्था और मृत्यु धीरे-धीरे आती हैं। हम बहुत धीरे-धीरे लेकिन प्रतिक्षण मृत्यु के करीब पहुँच रहे हैं । होता यह है कि रात को हम सोते हैं, सुबह जागकर जब दर्पण में अपना चेहरा देखते हैं तब बिल्कुल वैसा ही पाते हैं जैसा रात को जब सोए थे, तब था । हमें पता ही नहीं चलता कि रात भर में हम कितना बदल गये। कितना खून बदल गया, कितने विचार बदल गए, यह शरीर बदल गया। ये बाल क्या यूँ ही सफेद हो गए हैं? धीरे-धीरे सब बदल रहा है। तुमने अपने बचपन की तस्वीर देखी है । क्या आज तुम वैसे ही हो? क्या यौवन की चपलता और शक्ति अब भी यथावत् है? फिर कैसे परिवर्तन हो गया? परिवर्तन तो हर क्षण हो रहा है। जो तुम कल थे वह आज नहीं और जो आज हो वह आने वाले Jain Education International For Personal & Private Use Only 131 www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy