________________
पारिवारिकता का, आत्मीयता का नाम है।
बाहरी रूप में सबसे हिलमिलकर प्रेमपूर्वक रहो और जब भी स्वयं को एकान्त में पाओ अन्दर उतरो, आत्म-निरीक्षण करो कि क्या स्थिति है। कितना क्रोध, मान, माया, लोभ है। अपनी व्याकुलता को परखो, अपने भीतर होने का प्रयास करो। अपने क्रोध से, अहंकार से लड़ो, उन्हें रूपान्तरित करो। अक्रोध, क्षमा और प्रेम से क्रोध पर विजय पाओ। अहंकार को विनय से परास्त करो। लोभ पर दान और सहयोग से विजित हो जाओ। आन्तरिक युद्ध आत्म-विजय देगा। यह विजय जो जीवन को अनुपम प्रसाद से भरेगी। जिस विजय के सामने विश्व-विजय भी फीकी है। जीवन में शाश्वत सुख व आनन्द रहता है। महावीर ने ऐसा ही जाना। आप सब भी उसी अनुभव से गुजरें यही कामना है।
28/
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org