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सम्राट अशोक ने कलिंग-युद्ध किया। वहाँ लाखों व्यक्तियों का संहार हआ। अशोक की विजय हुई। वह और उसके सेनापति विजय का जश्न मना रहे थे। विजय के उन्माद में विक्षिप्त सम्राट के पास एक बौद्ध भिक्षु आया। उसने कहा, 'सम्राट ! तुम अपना विजयोत्सव मनाओ, लेकिन थोड़ा-सा समय मुझे दो और इस समय जैसा मैं कहूँ वैसा ही तुम करो। सम्राट सहमत हो गया। जीत के नशे में तो वह कुछ भी करने को तत्पर हो सकता था। सम्राट ने भिक्षु का सम्मान किया। भिक्षु उसे युद्ध के मैदान पर ले गया, और कहा- कुछ क्षणों के लिए यहाँ खड़े हो जाओ। युद्ध-भूमि से वीभत्स चीत्कार आ रही थी। चारों तरफ करुण क्रन्दन हो रहा था। घायल योद्धा अशोक को प्रताड़ित कर रहे थे। उसके विश्व-विजय को आतताई की विजय कह रहे थे। वहाँ की नर-नारियाँ, युवा-वृद्ध सभी सम्राट को अपशब्द बोल रहे थे, उसकी विजय की निंदा और भर्त्सना कर रहे थे। अपनी विजयपताका फहराने के लिए इतना भयंकर नरसंहार ! सम्राट सिहर उठा।वह एक पल भी वहाँ न रुक सका।
धरती पर एकमात्र सम्राट अशोक ही वह सम्राट हुआ, जो युद्ध लड़कर युद्ध से विमुख हो गया, अन्यथा युद्ध की पिपासा कभी मिटी है? एक वही सम्राट है जिसने युद्ध के बाद अहिंसा की दीक्षा ग्रहण की। उस चीत्कार, उस क्रन्दन ने उसकी आत्मा को जगा दिया, करुणा को जाग्रत किया और अहिंसा को गर्व है, करुणा को गर्व है कि क्रूरता के गर्भ से करुणा का स्रोत निःसृत हुआ और सम्राट अशोक जैसा नरेश
पाया।
__महावीर के रहते महावीर के भक्त उनकी चन्दन-मूर्ति के लिए लड़ पड़े। पहले के युद्धों में स्वाभिमान के लिए युद्ध नहीं होता था। बिल्कुल छोटी-छोटी निरर्थकसी बातों के लिए लड़ाइयाँ हो जातीं । प्रसेनजित और बिम्बसार के मध्य एक दासी को लेकर युद्ध हो गया।आज युद्ध के रूप बदल गए हैं । कभी धन के लिए कभी भूमि के लिए युद्ध हो जाता है।युद्ध के रूप बदल सकते हैं, पर युद्ध जारी है। पहले दुश्मनों से लड़ते थे, अब घर वालों को ही दुश्मन मान बैठे हैं। किसकी लड़ाई रह पाई दुनिया में। तुम कौन से यहाँ सदा ही रहने वाले हो, जो जीत पाओगे।
मेरा तो मानना है हम सभी पृथ्वी पर एक-दूसरे के परिपूरक हैं। कोई बौद्धिक रूप से, कोई साधनागत तरीके से, कोई आर्थिक ढंग से, कोई शारीरिक रूप से, कोई समय देकर, सभी अपने अनुसार सहयोग करते हैं। हम एक-दूसरे को सहयोग देकर ही मिले-जुले रूप में रह पाएँगे। टूटने में तो कुछ नहीं है। एकत्व बोध के साथ आत्म-विजय के लिए भीतर उतरते हो तब लड़ाई किसी से होगी ही नहीं। यदि हम दुनिया को प्रेम का संदेश देना चाहते हैं, तो इसका प्रारम्भ घर से ही करना होगा। परिवार किसी समूह का नहीं, अपितु एक दूसरे के लिए त्याग का नाम है,
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