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स्वाभाविक था क्योंकि वह सोचता था, संत तो निःशुल्क मिलते हैं, उन्हें तो जब चाहो तब लाया जा सकता है। एक पंडित को लाना कठिन है, लेकिन संत को लाना बहुत ही आसान है।
भारत-विजय के बाद जब सिकंदर लौटने लगा, तो उसे डायोज़नीज़ की बात याद आ गई। उसने संत को ढूँढने का आदेश दिया। सिपाहियों ने गाँव वालों से पछा। पता लगा उस गाँव के बाहर एक संत है। उसने सिपाहियों को भेजा। सिपाहियों ने जाकर संत से कहा, तुम्हें हमारे साथ यूनान चलना होगा।'
संत ने पूछा, क्यों? मुझे तो यूनान से कोई काम नहीं।' सिपाही ने कहा, 'यह सम्राट सिकन्दर का आदेश है। तुम्हें चलना ही होगा।' संत ने कहा, 'सम्राट!सम्राट सिकन्दर।'
सिपाही ने कहा, 'हाँ! सिकन्दर विश्व-विजेता है। विश्व का सम्राट है। तुम्हें उसका आदेश मानना ही होगा।
संत हँसे, उन्होंने कहा, 'सम्राट् ! सिकन्दर सम्राट नहीं है। जो स्वयं का ही स्वामी नहीं, वह विश्व का स्वामी कैसे हो सकता है?' ___ अपने सैनिकों से अपनी तौहीन की बात सुनकर सिकन्दर क्रोध से आगबबूला हो उठा और स्वयं अपने सेनापतियों के साथ संत तक पहुँचा। वहाँ जाकर बोला, 'जानते हो तुमने जिस व्यक्ति का अनादर-अपमान किया है, वह विश्वविजेता है। संत हँसा और कहा, 'तुम स्वयं को विश्व-विजेता कहते हो, देखो. मेरे
आसपास कुछ मक्खियाँ मँडरा रही हैं, इन मक्खियों पर भी अपनी विजय कर दिखाओ।जरा इन्हें अपने काबू में कर दिखाओ।'
सिकंदर क्रोध से तमतमाने लगा। उसे अपने सेनापतियों के सामने अपमानित होना पड़ रहा था। क्रोध से भरकर उसने अपनी तलवार खींच ली और चिल्लाकर कहा, 'फकीर! सिकंदर चाहे तो तुम्हारी गर्दन अलग कर सकता है।'
संत ने बड़े शांत भाव से कहा, 'अगर कर सकते हो तो कर ही डालो। हम भी देखेंगे कि कैसे हमारे सामने हमारी काया गिरती है। जो मरणधर्मा है, वह तो मृत ही है और जो जीवित है, वह सौ बार कटकर भी जीवित ही रहेगा।हम भी तो देखें,तुम कैसे काटते हो, हम भी तो अपनी मृत्यु देखें, हम भी अपनी मृत्यु पर नृत्य करें। मिट्टी को तो मिट्टी में ही मिलना है। और सिकंदर! न केवल मेरी मिट्टी बल्कि कुछ दिन बाद तुम्हारी मिट्टी भी इसी मिट्टी में मिलने वाली है। और मैं जानता हूँ तुम मुझे मारकर भी न मार पाओगे और तुम्हारे सारे सेनापति, हकीम और वैद्य तुम्हें बचा नहीं पाएँगे।'
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