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________________ टी.वी. देखोगे और कुछ नहीं तो सफाई के नाम पर घर के सामान की उठा-पटक करोगे या कागज फाड़ोगे, नावें बनाओगे यानी कुछ-न-कुछ करते रहोगे। कभी तो स्वयं में, मौन में, अकेले अपनी शान्ति में जीने का प्रयास करो।देखो! अकेले में कैसे जीया जाता है। कुछ फुरसत में रहना सीखें। प्रायः कोई काम न करते हुए भी हम मानसिक रूप से कहीं-न-कहीं व्यस्त रहते हैं। इस मानसिक व्यस्तता से बचें। संगीत का आनन्द लें। व्यर्थ कामों का बोझ न लादें। अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना समय सार्थक कार्यों में खर्च करें, उतना ही तनाव कम होगा। एकाकीपन में भी जीना आना चाहिए। भीड़ में तो सभी जी लेते हैं, लेकिन वह प्रणम्य है जो भीड़ के बीच भी अकेला रहता है। राम वनवासी होकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, तो ठीक है, लेकिन ध्यान दो उस भरत की ओर, जो महलों में रहकर भी राम से अधिक वनवासी का जीवन जी रहा है। हो सकता है गुफा में रहकर भी तुम संसार खड़ा कर लो। यह अलग बात है कि वहाँ लोग न पहुँचेंगे, पर तुम्हारे विचार तो तुमसे अलग नहीं हैं। वे विचार तो वासना से भरे हैं, वहाँ भी पीछा करेंगे। वे विचार तुम्हारे इर्द-गिर्द लेश्या-मंडल के रूप में घूमते रहेंगे। मेरे देखे तो व्यक्ति घर में रहकर भी संन्यस्त जीवन व्यतीत कर सकता है। दो व्यक्ति मेरे आदर्श हैं, एक हैं राजर्षि प्रसन्नचन्द्र, जिनके लिए भगवान कहते हैं कि अभी इनकी मृत्यु हो जाए तो सातवीं नर्क में जाएँगे और दूसरे ही क्षण कहते हैं कि अब इनकी मृत्यु निर्वाण है। मात्र दो मिनट के अन्तराल में एक व्यक्ति के स्वर्ग और नरक के निर्माण होते हैं। दूसरे आदर्श हैं स्थूलिभद्र, जो कोशा वेश्या के घर चातुर्मास करके भी स्वयं को बेदाग और निर्लिप्त रख पाए। हमारा ब्रह्मचर्य तो एक लबादा है। एक महिला पुरुष को स्पर्श नहीं करेगी।वह बचेगी कि कहीं स्पर्श हो गया और विचलित हो गई तो? वह स्वयं ही भयभीत है, विचलित है। ब्रह्मचर्य को तो हमने ओढ़ रखा है। अरे! कहीं छूने भर से कुछ खण्डित होता है? तुम इतने कमजोर हो? लेकिन हम डर रहे हैं। इसीलिए जब भीतर की सुवास फूट आए तो ये बाहरी आवरण फीके हो जाते हैं। आन्तरिक सौन्दर्य की झलक मिल जाने पर बाहर का सौन्दर्य रसहीन हो जाता है। बौद्धों में हीनयान और महायान दो परम्पराएँ रही हैं। महायान धर्म तो आज भी विद्यमान है, लेकिन आज से हजार वर्ष पूर्व हीनयान पर जोर रहता था। हीनयान के आचार्य-पद पर किसे प्रतिष्ठित किया जाए इसकी परीक्षा होती। चौबीस घंटे तक किसी नग्न स्त्री को उस संघ के आचार्य-पद के उम्मीदवार के साथ रखा जाता, उसके साथ रहकर जो संत निर्लिप्त रह पाता, उसे ही संघ का आचार्य बनने का 121 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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