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________________ रहता है।आँखें बंद होने पर भी भीतर की आँखें खुली रहती हैं। सच्चे ज्ञानी व्यक्ति के लिए सूर्य कभी अस्त नहीं होता,उसका सूरज तो हमेशा जागृत रहता है लेकिन जिस ज्ञान के नाम पर केवल ज्ञान की सूचनाओं का संग्रह भर किया है, वह जागते हुए भी सोया हुआ है। वह कर्म कर रहा है, तब भी सोया हुआ है। उस आदमी के जीवन में सूरज कभी उगता ही नहीं है। आम तौर पर सूर्य रोजाना सुबह पूरब से निकलता है और शाम को पश्चिम में अस्त होता है, मगर ऐसे आदमी के जीवन में न तो सूर्योदय होता है और न ही सूर्यास्त । वह तो धोबी के कुत्ते की तरह घर से घाट तक का सफर ही करता रहता है, मगर न तो वह घर का होता है और न ही घाट का। उसके जीवन का सूर्योदय घाट की ओर होता है और सूर्यास्त घर की ओर। वह ज्ञान, वह चेतना जो विज्ञान की ओर बढ़ जाए, जो चेतना आनंद की ओर बढ़ जाए, वो चेतना मनुष्य को मुक्ति दे जाती है। मुक्ति पाने का यह सबसे सुगम व सरलतम उपाय है। यह मुक्ति का मंत्र है, मुक्ति की आधारशिला है। हमारा मन और हमारी चेतना हमारे प्राणों की ओर, हमारे शरीर की ओर बह जाए, तो यही चेतना, यही आत्मा, यही कर्म,यही क्रिया हमारे लिए संसार का निर्माण करती है और अगर पूछते हो कि पार होने के लिए जीव को क्या जानना चाहिए, तो मैं यह कहूँगा कि जानने की आदत छोड़ो, क्योंकि जान-जान कर कोई भी ज्ञानी नहीं हो पाया। जानकर कोई व्यक्ति प्राणवंत आत्मवान नहीं हो पाया है। जान-जान कर व्यक्ति पण्डित जरूर हो जाता है। किसी व्यक्ति ने मुझसे कहा कि मेरा तोता राम-राम करता है। बड़ा पण्डित है। मैंने कहा कि सच कहते हो, आज यही हो रहा है। पण्डित और तोते में कोई फ़र्क ही नहीं रह गया है। जैसे तोता बोलता है, वैसे ही पण्डित बोलता है। पण्डित तो वह चम्मच है, जो दाल के हलवे में जाता है, लोगों को पुरसगारी करता है, मगर खुद चम्मच के पेट में कुछ नहीं जाता। पण्डित का यही हाल है। वह ज्ञान रूपी हलवे में रहता है। मगर खुद उसका पेट ज्ञान से नहीं भरता वह रिक्त ही रहता है। थोड़ा-सा हलवा भी उस चम्मच से चिपक जाए तो उसका जीवन धन्य हो सकता है। ज्ञान जीवन में उतरे, तो ही साक्षरता सार्थक है। पुस्तकों को रटो मत, उनसे जीवन बनाना सीखो। पुस्तक से ज्ञान नहीं, केवल जानकारी मिलती है। प्राप्त जानकारी का सम्यक् उपयोग करने से ज्ञान अपना होता है। ज्ञान औरों को देने के लिए नहीं होता। ज्ञान औरों से पाया भी नहीं जा सकता। अगर कोई सोचे कि मैं उसे ज्ञान दे दूंगा तो वह गलती पर है। मैं किसी को ज्ञान नहीं दे सकता। हाँ, अगर आप मुझसे ज्ञान ले जाएँ तो यह आपकी सजगता व सचेतनता होगी। कोई किसी को ज्ञान दे नहीं सकता।कोई ज्ञान ले जाए तो यह उसकी विशेषता होगी। 110/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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